Book Title: Uvangsuttani Part 05
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 1155
________________ १०७८ सिणेहभाव-सिरिकंदलग सिबिया (शिबिका) ज २११०१,१०२ सिब्भ (श्लेष्मन्) ज २११३३ सिय (स्यात) प ११४८,५२५,१०,२०३०,३२, १०२,१२६,१३१,१३२,१३४,१६०,१७७, १६३,२१४,२२८, ६।११५,११६,१०१७ से १३,१७,१६,२०,३१,३२,३४,३६,३८,४०, ४२,४४,४६,४८,५०,५२,११।२,३,१२।६, २४,३२,३३,१५१५३,५४,६१,१२२,१२३; १७४६४,६५,१०२ से १०४,११६,१५०,१५२; २११६५,६८ से १००।२२।२६,२९,३०,३२, ३३,३८ से ४०,४२,५० से ५२,६७ से ६६, ७१,७४,६१,६३,६७,६६; २८॥३१,१०६, १११,११५,११७,१२०,१२२.१२५.१२८, १२६,१३२,१४३;३६।१४,१७,१६,२२,२३, २५,२७,३३,३४,६२,६३,७७ ज ७।२०८,२०६ सिया (स्पात्) ज ५७ सियाल (शृगाल) प १४६६,१११२१ ज २१३६, सिणेहभाव (स्नेहभाव) ज २।१४३ खित (सित) प २।३१ सित्त (सिक्त) ज॥६५३७,११६,५१५७ सिद्ध (सिद्ध) प ११११,१११३,२१६४,२१६४।२ से ४,६ से १२,१४,१६,१८,२० से २२,३।३७ से ३६,१८३,५॥३,६४४,४६,५७,५६,६७,६६; १११३६१२१७,१०,२०,१६।२५,३०,३२,३३, ३५,३७,१८१७१६।५।२२।८।२८।१०७,११०, ११३,११४,१२०,१२१,१२४,१२५.१३१, १३८,१३६,१४१,३२१६,३२१६३६।६३,६४ ज २।६।१,०८२,८८,८९,३१२२५,४।१६२।१, १७२।१,२०४।१,२१०।१,२६३।१,२६६।१; ५५८,७।११७ चं १२ लिलि (सिद्ध केवलिन् ) १८१६८,१०० सिद्धगति (सिद्धगति) प ६।५ सिद्धत्य (सिद्धार्थ) उ ५२६,२८ लिया (सिद्धार्थक) ज ३१२०६;५२५५,५६ सिद्धबाद (सिद्धार्थवन) ज २१६५ रिस्थिया (सिद्धाथिका) प १७११३५ मियोरम (सिद्धभारल) ज ७.११७.? सू १०८६१ सिद्धाय जड (सिदा तनकूट) ज १३३४ से ३६ ४१,४१४४,४५,४८,७६.६६,१०५,१०६, १३६,१६२,१६३.१८६.१६२,१९८.२१०, २११,२३५,२३७,२४२,२६३ सिखाया (तिदा तन) ज ४.१४७,१६३,१८० २१६,२१७,२२०,२३५.२३७,२४२ सिद्धाययणकर (सिद्धा तनकट ) ज ४।२१२,२७५ सिद्धालय (सिद्धालय) प २०६४ सिद्धि (सिद्धि) प २६४,३६६८३२ सिद्धिगइ (सिद्धिगति) ज ५२१ सिप्प (शिल्प) ज २१६४;३।१६७१७,५५,७ सिलारिय शिलार्य) प ११६२,६७ सिपिया (शिलिका) प १४२६२ सिप्पिसंपुङ (सुलिसंपुट) ५ ११४६ सियाली (शृगाली) ५१११२३ सिर (शिरस्) ज २।१३३;१८०,२२१ सिरय (शिरस्क), २।४६ ज २।१५,३।६,१८, ६३,१८०,२२२ सिरसावत्त (शिरसावर्त ) ज ३१५,६,८,१२,१६, २६,३६,४७,५३,५६,६२.६४,७०,७२,७४, ७७,८४,८८,६०,१००,११४,१२६,१३३, १३८,१४२,१४५,१५१,१५७,१६५,१८१, १८६,२०५,२०६,२०६:५१५,२१,४६,५८ उ ११३६,४५,५५,५८,८०,८३,६६,१०७, १०८,११६,११८,१२२,३।१०६,१३८,४।१५; ५।१७ सिरसिज (शिरसिज) ज ३।१३८ सिरि (श्री) ज २१८,६,१५, ४।२।१,४।१७ से २०, २२; ५।११।१,५१३८,७।२१३ सिरिकता (श्रीकान्ता) ज ४११५५।२,२२४।१ सिरिकंदलग (श्रीकन्दलक) ११६३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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