Book Title: Uvangsuttani Part 05
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 1161
________________ १०८४ सुरम्म-सुसाहय सुरम्म (सुरम्य) ज २११२,४।१३ सू २०१७ सुरवर (सुरवर) ज ५७ सुरवरिंद (सुरवरेन्द्र) ज ३।१०६ सुरहि (सुरभि) प २१३० ज ३१६,१२,३५,८८, २२१,२२२ सुरा (सुरा) उ ११३४,४६,७४ सुरादेवी (सुरादेवी) ज ४।४४,२७५,५।१०।१ उ ४।२।१ सुरिंद (सुरेन्द्र) प २।५० ज २१६१, ३।३५,५।१८, २१,४८,५२ सुख्या (सरूपा) ज ५।१३ । सुरूव (मुरूप) प २।३०,३१,४१,४५,४५।१,४८ ज ३।१०६,१३८,४।२६ सू २०१४ उ १११२, १३,३१,५३,७८,६५,५१५,२२ । सुलद्ध (सुलब्ध) उ ११३४,३।६८,१०१,१३१ सुलस (सुलस) ज ४।६४,२०७ सुलित्त (सुलिप्त) उ ३।१३०,१३१,१३४ सुवग्गु (सुवल्गु) उ ४।२१२,२१२।३ सुवच्छ (सुवत्स) प २।४७।२ ज ४।२०२।१ सुवच्छा (सुवत्सा ) ज ४।२०४,२३८,५।६।१ सुवण्ण (सुपर्ण) प २१३०११,४०।१,८,१०,५।३ ज ३।२४।१,२,१३१।१,२ सुवण्ण (सुवर्ण) प १।२०।१ ज २।२४,६४,६६; ३।६,२०,३३,५४,६३,७१,८४,६५,१०६, ११७,१३७,१४३,१५६,१६७।८,१८२,१८४, २२२;४।३,२५,२६,५१३८,५२,५५,६७,६८ उ३१४० सुवण्णकुमार (सुपर्णकुमार) प १।१३१,२।३७ से ४०,४१४६६१८ सुवण्णकुमारराय (सुपर्णकुमारराज) प २।३७ से ३६ सुवण्णकुमारिद (सुपर्णकुमारेन्द्र) प २।३७,३६ सुवण्णकुमारी (मपर्णकुमारी) प ४।५२ सुवण्णकूड (सुवर्णकूट) ज ४।२७५ सुवण्णकूला (सुवर्णकूला) ज ४।२७२,२७४,२७५; ६।२० सुवण्णजूहिया (सुवर्णयूथिका) प १७।१२७ ___ पीलीजूही सुवण्णमय (सुवर्णमय) ज ४।२६,५१५५. सुवण्ण (वासा) (मुवर्णवर्षा) ज ५।५७ सवण्णसिप्पि (सूवर्णशुक्ति) प १७४१२७ सुण्णिद (सुपर्णेन्द्र)प २०३८ सुवप्प (सुवप्र) ज ४।२१२,२१२।३ सुवयण (सुवचन) उ १।१७ सुविण (स्वप्न) उ १।३३।५।२५ सुविभत्त (सुविभक्त) ज ११३७, २।१४,१५, ३।३ सू २०१७ सुविरइय (सविरचित) ज २।१५, ३।२४;४।१३ सू २०१७ सुव्वत (सुव्रत) सू २०१८ सुव्वय (मुव्रत) सू २०६८ सुव्वया (सुव्रता) उ ३१६६,१००,१०६ से १०८, १११ से ११३,११५,११६,११८,१३२,१३३, १३६,१४१ से १४३,१४५,१४६,१४८,१५० सुसंगोविय (सुसङ्गोपित) उ ३।१२८ सुसंठिय (सुसंस्थित) ज ७।१७८ सुसंपरिहिय (सुसंपरिहित) उ ३।१२८ सुसंवुय (सुसंवृत) ज ३।६,२२२ सुसज्ज (सुसज्ज) ज ५१४३ सुसद्द (मुशब्द) ज ७।१७८ सुसमण (नुशमन) ज २६५३,१६२ सुसमदुस्समा (मुषमदुष्षमा) ज २।२,३,६,७,५४,५६ सुसमससमा (गुषमगुषमा) ज २।२,३,६,७,५२ १६१,१६३,१६४;४।१०६ सुसमा (सुषमा) ज २२,३,६,५१,५२,१६०,१६१; ४।८३ सुसमाहिय (ससमाहित) ज ३।३५ सुसवण (सुश्रवण) ज २०१५ सुसारक्खिय (सुसंरक्षित) उ ३।१२८ सुसाहय (सुसंहत] ज २०१५ १ हे० २।१३८ सिप्षि (शुक्ति) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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