Book Title: Uvangsuttani Part 05
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 1146
________________ सम्मामिच्छत्ताभिगमि-सयणिज्ज १०६६ सम्मामिच्छत्ताभिगमि (सम्यक मिथ्यात्वाभिगमिन) २४१,२४५,२४८,५।३,४,२८,३३,५२,५३,५८% प३४।१४ ६।७,६।११,१४,१५, ७१।१,७।२ से ४,१०, सम्मामिच्छद्दिछि (सम्यक् मिथ्यादृष्टि) प ६१९७; १२,१४ से २५,२७,३०,३२,३४,५४,६२ से १३।१४,१७,१७।११,२३,२५;१८७८,१६३१ ६४,६७ से ८१,८४,८६,८७,८८,६१ से ६६,६८ से ५;२११७२,२८११२७,१३८ से १०२,११०,१२७,१३१।१,१७१ से १७४, सम्मामिच्छादं सणपरिणाम १६०,२०१ से २०७ सू १०८।२.१११० से १२, (सम्यमिथ्यादर्शनपरिणाम) प १३।११ १४,१६ से २४,२६ से ३१,२।१,३,४।४,५, सम्मामिच्छादिट्ठि (सम् मिथ्यादृष्टि) प ३।१०० ७,८,१०,६।१८।११०११३८ से १५१, V सम्मुच्छ (सं+ मुच्छ) सम्मुच्छंति प ११८४ . १६२ से १६४,१६६ से १६६।१२।२,५; सम्मुच्छति प ११.४ १३।४।१४।३।१८।१,१३,३०,१६१२, सम्मुच्छिम (संमूच्छिम् ) प ११४६ से ५१,६०,६६, १६।८।१,२,१६।२११५,१६।२०१६,६ उ ११२; ७५,७६,८१ से ८४;३।१८३;४।१०७ से ३३५५,६२,५।२८,४१ १०६,११६ से ११८,१२५ से १२७,१३४ से सय (स्वक) ज ३।७७,८४,१०२,१५३,१६२, १३६,१४३ से १४५,१५२ से १५४,१६१; १७८,१८३.१८६,२२४;५१,६,८,१०,१३, ६।२१,२३,६५,७१,७२,७४,८४,६४,६७,१००, २२,२६,४३,५६ उ १।३३,४२,४४,१०८, १०२,१०८,६६,१६,२२,१६।२८,१७१४२, १२१,१२२,१२६,३।११,४३,५३,१४८,४।१५ ४६,६३ से ६५,६७,८६; २११६,१०,१२,१३, सय (शी,स्वप्) सयंति ज १।१३,३०,३३, २।७; १५ से १६,३०,३३,३५,३७,४३ से ४७; ४।२,८७,२१५,२४७,६।८ २११४७।२,२११४८,५३,५४,७२ सयं (स्वयं) प १११०११३; २३॥१३ से २३ सम्मुति (सन्मति) ज २१५६,६० सू १६।११।३ सय (शत) प २१४१ से ४३,४६,५५,५८,५६२, सयंजय (शतञ्जय) ज ७।११७।२ सू १०८६२ ६२११:२।६३,२१६४।६।१२।३६,३७,१८।३१, । सयंपभ (स्वयंप्रभ) ज ४।२६०।१ सू ५।१,२०८, ३६,६०,११३;२११६५;२२।४५,२३।७४,८६, २०१६ ८८,८६,६५,६८,९६,१०१ से १०४,१११, सयंबुद्ध (स्वयंबुद्ध) ५ १११०५,१०६,११८,११६ ११३,११७,११८,१३०,१३१,१६४,१८३,१८७ सयंबुद्धसिद्ध (स्वयं युद्धसिद्ध) | १११२ ज १७,९,१०,१८,२०,२३,२६,३७,३८,४०, सयंभुरमण (स्वयंभूरमण) प २११८७,६०,६१ ४८; २।४।३.१६,४८,५२,६४,७५,७७,७८, सयंभूरमण (स्वयम्भूरमण) प १५१५५,५५।३ ८०,८६,१२८,१४८,१५७,१६१,३।१,१८,३१, १६।३८ ३५,६३,६५,६६ से १०१,१०४,१०५,१०६, सयंसंबुद्ध (स्वयंभबुद्ध) ज ५१२१ १२६,१५६,१७८,१८०,१६३,२०६,२१०, सयक्कउ (शतक्रतु) ज ५।८ २१६,२२१,२२२,४।६,१०,१२.१३,२३,२५, सयग्घी (दे०) प २१३०,३१,४१ ३२,४६,५५,५७,६२,६५,६७,७२,७३,७५, सयज्जल (शतज्वल) ज ४।२१०।१; ७६,८१,८६,६०,६१,६३,६५,६८,१०३,११०, सयण (शयन) प ११।२५ ज ३।१०३ सू २०१४,७ १२०,१४१,१४२।१,२,१४३,१४७,१५४,१६३ उ ३३५०,११०,१११,४।१६,१८ से १६५,१६७,१६६,१७८,१८३,२००,२०५ से सयण (स्वजन) ज २१६६ २०७,२१३ से २१६,२२१,२२६,२३४,२४०, सयणिज्ज (शयनीय) ज ४।१३,३३,७६,६३,१३५, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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