Book Title: Uttaradhyayanani
Author(s): Nemichandracharya
Publisher: Pushpachandra Kshemchandra Balapurwala

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Page 775
________________ षट्त्रिंशं श्रीउत्तराध्ययनसूत्रे श्रीनेमिचन्द्रीया सुखबोधाख्या लघुवृत्तिः । जीवाजीवविभक्तिनामकमध्ययनम्। संसारिजीववक्तव्यता। ॥३८१॥ XXXXXXXXXXXXX व्याख्या-स्पष्टम् । नवरम्-"विजढम्मि" त्ति त्यक्ते स्वके काये ॥ ८२ ॥ एतानेव भावत आहएएसिं वन्नओ चेव, गंधओ रसफासओ । संठाणभेयओ वा वि, विहाणाई सहस्ससो॥८३ ॥ | व्याख्या स्पष्टम् । नवरम्-'विधानानि' भेदाः 'सहस्रशः' इति च बहुतरत्वोपलक्षणम् ॥ ८३ ॥ एवम्- | दुविहा आउजीवा उ, सुहमा बायरा तहा । पजत्तमपजत्ता, एवमेते दुहा पुणो ॥ ८४॥ बायरा जे उ पज्जत्ता, पंचहा ते पकित्तिया । सुद्धोदए य उस्से, हरतणु महिया हिमे ॥८५॥ एगविहमणाणत्ता, सुहुमा तत्थ वियाहिया । सुहुमा सबलोयम्मि, लोगदेसे य बायरा ॥८६॥ संतई पप्पऽणाईया, अपजवसिया वि य । ठिई पडुच्च साईया, सपज्जवसिया वि य ॥ ८७॥ सत्तेव सहस्साइं, वासाणुक्कोसिया भवे । आउठिई आऊणं, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं ॥ ८८ ॥ असंखकालमुक्कोसं, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । कायठिई आऊणं, तं कायं तु अमुंचओ ॥ ८९॥ अणंतकालमुक्कोसं, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढम्मि सए काए, आउजीवाण अंतरं ॥९॥ एएसिं वण्णओ चेव, गंधओ रसफासओ। संठाणभेयओ वा वि, विहाणाई सहस्ससो॥९१॥ ___व्याख्या-सूत्राष्टकमपि सुगमम् । नवरम् –'हरतनुः' स्निग्धपृथिवीसमुद्भवः तृणाप्रबिन्दुः, 'महिका' गर्भमासेषु सूक्ष्मवर्षम् , 'हिमं' प्रतीतम् ॥ ८४-८५-८६-८७-८८-८९-९०-९१ ॥ वनस्पतिसूत्राण्यपि चतुर्दशदुविहा वणस्सईजीवा, सुहमा बायरा तहा । पजत्तमपजत्ता, एवमेते दुहा पुणो ॥९२॥ बायरा जे उ पजत्ता, दुविहा ते वियाहिया। साहारणसरीरा य, पत्तेगा य तहेव य ॥ ९३ ॥ पत्तेयसरीरा उणेगहा ते पकित्तिया ।रुक्खा गुच्छा य गुम्मा य, लया वल्ली तणा तहा ॥९४॥ ||३८१॥

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