Book Title: Uttaradhyayanani
Author(s): Nemichandracharya
Publisher: Pushpachandra Kshemchandra Balapurwala
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षट्त्रिंशं जीवाजीवविभक्तिनामकमध्ययनम् ।
संसारिजीववक्तव्यता।
श्रीउत्तरा- अणंतकालमुक्कोसं, अंतोमुहत्तं जहन्नयं । विजढम्मि सए काए, अंतरेयं वियाहियं ॥ १५३ ॥ ध्ययनसूत्रे ||एएसिं वन्नओ चेव, गंधओ रसफासओ । संठाणादेसओ वा वि, विहाणाई सहस्ससो ॥१५४॥ श्रीनेमिच- व्याख्या-सूत्रदशकमपि स्पष्टम् ॥ १४५-१४६-१४७-१४८-१४९-१५०-१५१-१५२-१५३-१५४ ॥ न्द्रीया
पञ्चन्द्रियानाहसुखबोधा- पंचिंदिया उजे जीवा, चउबिहा ते वियाहिया।णेरइय तिरिक्खा य, मणुया देवाय आहिया १५५ ख्या लघु
| व्याख्या-स्पष्टम् ॥ १५५ ॥ तत्र तावन्नैरयिकानाहवृत्तिः । नेरइया सत्तविहा, पुढवीसू सत्तसू भवे । रयणाभ सक्कराभा, वालुयाभा य, आहिया ॥ १५६ ॥
पंकामा धूमाभा, तमा तमतमा तहा। इइ नेरइया एए, सत्तहा परिकित्तिया ॥ १५७॥ ॥३८४॥ लोगस्स एगदेसम्मि, ते सवे उ वियाहिया । इत्तो काल विभागं तु, तेसिं बुच्छं चउविहं ॥१५८॥
संतई पप्पऽणाईया, अपज्जवसिया वि य । ठिई पडुच्च साईया, सपज्जवसिया विय ॥ १५९॥ सागरोवममेगं तु, उक्कोसेण वियाहिया । पढमाइ जहन्नेणं, दसवाससहस्सिया ॥ १६०॥ तिन्नेव सागराऊ, उक्कोसेण वियाहिया । दुचाए जहन्नेणं, एगं तू सागरोवमं ॥ १६१ ॥ सत्तेव सागराऊ, उक्कोसेण वियाहिया । तइयाए जहन्नेणं, तिन्नेव उ सागरोवमा ॥ १६२॥ दससागरोवमाऊ, उक्कोसेण वियाहिया। चउत्थीए जहन्नेणं, सत्तेव उ सागरोवमा ॥ १६३ ॥ सत्तरससागराऊ, उक्कोसेण वियाहिया। पंचमाए जहन्नेणं, दस चेव उ सागरा ॥ १६४ ॥ बावीससागराऊ, उक्कोसेण वियाहिया । छट्ठीइ जहन्नेणं, सत्तरस सागरोवमा ॥ १६५ ॥ तित्तीससागराऊ, उक्कोसेण वियाहिया । सत्तमाए जहन्नेणं, बावीसं सागरोवमा ॥१६६॥
॥३८४॥

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