Book Title: Uttaradhyayanani
Author(s): Nemichandracharya
Publisher: Pushpachandra Kshemchandra Balapurwala
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श्रीउत्तराध्ययनसूत्रे
श्रीनेमिच
न्द्रीया सुखबोधाख्या लघुवृत्तिः ।
॥ ३८५ ॥
XX
भुओरगपरिसप्पा य, परिसप्पा दुविहा भवे । गोहाई अहिमाई य, इक्केक्का णेगहा भवे ॥ १८९॥ लोएगदेसे ते सबे, न सवत्थ वियाहिया । एतो कालविभागं तु, तेसिं वोच्छं तु चउद्दिहं ॥ १८२ ॥ संतई पप्पऽणाईया, अपज्जवसिया विय । ठिहं पडुच्च साईया, सपज्जवसिया विय ॥ १८३ ॥ | पलिओमा उ तिन्नि उ, उक्कोसेण वियाहिया । आउठिई थलयराणं, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं ॥ १८४॥ पलिओवमा उ तिन्नि उ, उक्कोसेण वियाहिया । पुचकोडीपुहुत्तं तु, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं ॥ १८५ ॥ कायठिई थलयराणं, अंतरं तेसिमं भवे । कालं अनंतमुक्कसं, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं ॥ १८६॥ एएसिं वन्नओ चव, गंधओ रसफासओ । संठाणादेसओ वा वि, विहाणाई सहस्ससो ॥ १८७॥ | विजढम्मि सए काए, थलयराणं तु अंतरं । चम्मे उ लोमपक्खीया, तइया समुग्गपक्खीया ॥ १८८॥ विययपक्खी य बोद्धव्वा, पक्खिणो उ चउविहा । लोएगदेसे ते सधे, न सवत्थ वियाहिया ॥ १८९ ॥ संतई पप्पऽणाईया, अपज्जवसिया विय । ठिई पडुच्च साईया, सपज्जवसिया विय ॥ १९०॥ पलिओवमस्स भागो, असंखिज्जइमो भवे । आउठिई खहयराणं, अंतोमुहुत्तं जहन्निया ॥१९१॥ असंखभागो पलियम्स, उक्कोसेण उ साहिओ । पुचकोडीपुहुत्तेणं, अंतोमुहुत्तं जहन्निया ॥ १९२॥ कायठिई खहयराणं, अंतरं तेसिमं भवे । कालं अनंतमुक्कोसं, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं ॥ १९३॥ एएसिं वण्णओ चेव, गंधओ रसफासओ । संठाणादेसओ वा वि, विहाणाई सहस्ससो ॥१९४॥ व्याख्या - प्रकटान्येव । नवरम् - 'एकखुरा : ' हयादयः, 'द्विखुराः ' गवादयः, गण्डी-वस्त्रोत्पक्ष्मिका तद्वद् वृत्ततया पदानि येषां ते 'गण्डीपदाः' गजादयः, " सणप्पय" त्ति सूत्रत्वात् 'सनखपदाः सिंहादयः, “चम्मे" त्ति प्रक्रमात्
षट्त्रिंशं जीवाजीव
विभक्ति -
नामकम
ध्ययनम् ।
संसारिजीव
वक्तव्यता ।
।। ३८५ ॥

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