Book Title: Uttaradhyayanani
Author(s): Nemichandracharya
Publisher: Pushpachandra Kshemchandra Balapurwala
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श्रीउत्तराध्ययनसूत्रे श्रीनेमिच
न्द्रीया सुखबोधाख्या लघुवृत्तिः ।
षट्त्रिंश जीवाजीवविभक्तिनामकमध्ययनम्।
संसारिजीववक्तव्यता।
॥३८७॥
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दो चेव सागराई, उक्कोसेण वियाहिया । सोहम्मम्मि जहन्नेणं, एगं तु पलिओवमं ॥ २२२ ॥ सागरा साहिया दुन्नि, उक्कोसेण वियाहिया। ईसाणम्मि जहन्नेणं, साहियं पलिओवमं ॥ २२३॥ सागराणि य सत्तेव, उक्कोसेणं ठिई भवे । सणंकुमारे जहन्नेणं, दुन्नि ऊ सागरोवमा ॥ २२४ ॥ साहिया सागरा सत्त, उक्कोसेणं ठिई भवे।माहिदम्मि जहन्नेणं, साहिया दोन्नि सागरा ॥ २२५ ॥ दस चेव सागराइं, उक्कोसेणं ठिई भवे । बंभलोए जहन्नेणं, सत्त ऊ सागरोवमा ॥ २२६ ॥ चउद्दस उ सागराई, उक्कोसेणं ठिई भवे । लंतगम्मि जहन्नेणं, दस ऊ सागरोवमा ॥ २२७॥ सत्तरस सागराइं, उक्कोसेणं ठिई भवे । महासुक्के जहन्नेणं, चउद्दस सागरोवमा ॥ २२८॥ अट्ठारस सागराई, उक्कोसेणं ठिई भवे । सहस्सारे जहन्नेणं, सत्तरस सागरोवमा ॥ २२९॥ सागरा अउणवीसंतु, उक्कोसेणं ठिई भवे । आणयम्मि जहन्नणं, अहारस सागरोवमा ॥ २३०॥ वीसं तु सागराई, उकोसेणं ठिई भवे । पाणयम्मि जहन्नेणं, सागरा अउणवीसई ॥ २३१ ॥ सागरा एक्कवीसं तु, उक्कोसेणं ठिई भवे । आरणम्मि जहन्नेणं, वीसई सागरोवमा ॥ २३२॥ बावीस सागराइं, उक्कोसेणं ठिई भवे । अच्चुयम्मि जहन्नेणं, सागरा इकवीसई ॥ २३३ ॥ तेवीस सागराइं, उक्कोसेणं ठिई भवे । पढमम्मि जहन्नेणं, बावीसं सागरोवमा ॥ २३४ ॥ चउवीस सागराइं, उक्कोसेणं ठिई भवे । बीयम्मि जहन्नेणं, तेवीसं सागरोवमा ॥ २३५॥ पणवीस सागराई, उक्कोसेणं ठिई भवे । तइयम्मि जहन्नेणं, चउवीसं सागरोवमा ॥ २३६॥ छब्बीस सागराइं, उक्कोसेणं ठिई भवे । चउत्थम्मि जहन्नेणं, सागरा पणवीसई ॥ २३७॥
॥३८७॥

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