Book Title: Uttaradhyayanani
Author(s): Nemichandracharya
Publisher: Pushpachandra Kshemchandra Balapurwala
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संसारिजीववक्तव्यता।
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| इंदगोवगमाइया, णेगहा एवमायओ । लोगेगदेसे ते सव्वे, न सव्वत्थ वियाहिया ॥ १३९ ॥ |संतई पप्पणाईया, अपज्जवसिया वि य। ठिई पडुच्च साईया, सपज्जवसिया वि य ॥१४॥ |एगूणपण्णऽहोरत्ता, उक्कोसेण वियाहिया । तेइंदियआउठिई, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं ॥ १४१॥
संखेजकालमुकोसं, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । तेइंदियकायठिई, तं कायं तु अमुंचओ॥ १४२॥ all अणंतकालमुक्कोसं, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । तेइंदियजीवाणं, अंतरेयं वियाहियं ॥ १४३ ॥
एएसिं वण्णओ चेव, गंधओ रसफासओ। संठाणाएसओ वा वि, विहाणाइं सहस्ससो॥१४४॥ __ व्याख्या-त्रीन्द्रियसूत्रनवकमपि स्पष्टम् । नवरम्-'गुम्मी' शतपदी ॥ १३६-१३७-१३८-१३९-१४०-१४११४२-१४३-१४४ ॥ चतुरिन्द्रियानाहचउरिंदिया उ जे जीवा, दुविहा ते पकित्तिया । पजत्तमपज्जत्ता, तेसिं भेए सुणेह मे ॥ १४५॥ अंधिया पोत्तिया चेव, मच्छिया मसगा तहा। भमरे कीडपयंगेय, डिंकुणे कुंकुणे तहा ॥१४६॥ कुकडे सिंगिरीही य, नंदावत्ते य विंछिए। डोले भिगिरीडी य, विरिली अच्छिवेहए ॥१४७॥ अच्छिले माहए अच्छि-विचित्ते चित्तपत्तए । ओहिंजलिया जलकरीय, नीया तंबगाइया ॥ १४८॥ इइ चउरिंदिया एए, णेगहा एवमायओ।लोगस्स एगदेसम्मि, ते सवे पकित्तिया ॥१४९॥ संतइं पप्पऽणाईया, अपज्जवसिया विय। ठिहं पडुच्च साईया, सपज्जवसिया वि य ॥ १५०॥ छच्चेव य मासा उ, उक्कोसेण वियाहिया । चउरिंदियआउठिई, अंतोमुहुत्तं जहन्निया ॥ १५१॥ संखेजकालमुक्कोसं, अंतोमुहुत्तं जहन्निया । चउरिदियकायठिई, तं कायं तु अमुंचओ ॥ १५२ ॥
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