Book Title: Uttaradhyayanani
Author(s): Nemichandracharya
Publisher: Pushpachandra Kshemchandra Balapurwala
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षट्त्रिंशं
श्रीउत्तराध्ययनसूत्रे श्रीनेमिचन्द्रीया सुखबोधाख्या लघुवृत्तिः ।
जीवाजीवविभक्तिनामकमध्ययनम् ।
संसारिजीववक्तव्यता।
॥३८३॥
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ओराला तसा जे उ, चउहा ते पकित्तिया। बेइंदिय तेइंदिय, चउरो पंचिंदिया चेव ॥ १२६ ॥ __व्याख्या-स्पष्टम् ॥ १२६ ॥ द्वीन्द्रियानाहबेइंदिया उजे जीवा, दुविहा ते पकित्तिया। पजत्तमपज्जत्ता, तेसिं भेदे सुणेह मे ॥ १२७ ॥ किमिणो सोमंगला चेव, अलसामाइवाया। वासीमुहा य सिप्पीया, संखा संखगणातहा॥१२८॥ पल्लोयाणुल्लगा चेव, तहेव य वराडगा । जलूगा जालगा चेव, चंदणा य तहेव य ॥१२९ ॥ इइ बेइंदिया एए, णेगहा एवमायओ । लोएगदेसे ते सके, न सवत्थ वियाहिया ॥ १३०॥ संतई पप्पणाईया, अपज्जवसिया वि य । ठिई पडुच्च साईया, सपजवसिया वि य ॥१३१॥ वासाइं बारसेव उ, उक्कोसेण वियाहिया । बेइंदियआउठिई, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं ॥ १३२॥ संखेजकालमुक्कोसं, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । बेइंदियकायठिई, तं कायं तु अमुंचओ ॥ १३३ ॥ अणंतकालमुक्कोसं, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । बेइंदियजीवाणं, अंतरेयं वियाहियं ॥ १३४॥ एएसिं वण्णओ चेव, गंधओ रसफासओ। संठाणाएसओ वा वि, विहाणाइं सहस्ससो॥१३५॥
व्याख्या-सूत्रनवकं स्पष्टम् । नवरम्-'कृमयः' अशुच्यादिसम्भवाः, शेषास्तु केचित् प्रकटाः केचिद् यथासम्प्रदाय वाच्याः ॥ १२७-१२८-१२९-१३०-१३१-१३२-१३३-१३४-१३५ ।। त्रीन्द्रियानाहतेइंदिया उजे जीवा, दुविहा ते पकित्तिया । पजत्तमपजत्ता, तेसिं भेदे सुणेह मे ॥१३६॥1 कुंथुपिवीलिउहंसा, उक्कलुद्देहिया तहा । तणहारा कट्टहारा य, मालूगा पत्तहारगा ॥१३७॥ कप्पासट्टिमिंजा य, तिंदुगा तउसमिंजगा । सदावरी य गुम्मी य, बोधवा इंदगाइया ॥ १३८॥
॥३८३॥

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