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दर्शन को ज्ञान के बाद रखा गया है। ग्रन्थकार इसे स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि ज्ञान से तत्त्व को जाने और दर्शन से उस पर श्रद्धा करे। 12 दर्शन के श्रद्धापरक अर्थ में ज्ञान की प्राथमिकता श्रद्धा की विशुद्धता को सूचित करती है। ज्ञान के अभाव में होने वाली श्रद्धा अंधश्रद्धा रूप होती है। जिस पर श्रद्धा करना है उस वस्तुतत्त्व का प्रथम ज्ञान होना आवश्यक है। वस्तुतः श्रद्धा ज्ञान प्रसूत होना चाहिए। इस सन्दर्भ में उत्तराध्ययनसूत्र में कहा गया है कि प्रज्ञा (ज्ञान) से धर्म की समीक्षा करे एवं तर्क से तत्त्व का विश्लेषण करे। 13
ज्ञान दर्शन के पूर्वापर सम्बन्ध में नवतत्त्वप्रकरण समन्वयवादी दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। उसमें कहा गया है कि जो जीवादि पदार्थों को यथावत् जानता है उसे सम्यक्त्व होता है। इस प्रकार यहां भी ज्ञान को दर्शन से पूर्व माना गया है, लेकिन अगली पंक्ति में कहा गया है कि जो वस्तुतत्त्व को स्वतः नहीं जानता है किन्तु जिन प्रणीत तत्त्वों पर श्रद्धा भाव रखता है तो उसे भी सम्यक्त्त्व प्राप्त हो जाता है। 14 अतः दर्शन को ज्ञान से पूर्व भी स्वीकार किया गया है। इस प्रकार दृष्टिपरक अर्थ में दर्शन का ज्ञान से पूर्व स्थान है, जबकि श्रद्धापरक अर्थ में इसका स्थान ज्ञान के पश्चात् है।
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́ मोक्षमार्ग की पूर्वापरता का यह विचार सम्यग्दर्शन एवं सम्यग्ज्ञान के विषय में ही किया गया है। सम्यक्चारित्र के सन्दर्भ में ऐसा कोई विवाद नहीं है, क्योंकि चारित्र की अपेक्षा तो ज्ञान और दर्शन को ही प्राथमिकता दी गई है। उत्तराध्ययनसूत्र में कहा गया है कि चारित्र से पूर्व दर्शन (सम्यक्त्व) का होना आवश्यक है तथा सम्यग्ज्ञान के बिना सम्यक्चारित्र (सदाचरण ) सम्भव नहीं है। 15 दशवैकालिकसूत्र में भी कहा गया है कि जो जीव और अजीव के स्वरूप को नहीं - जानता है ऐसा अज्ञानी साधक क्या संयम का पालन करेगा। 16
इस प्रकार जैनविचारणा सम्यग् आचरण के पूर्व सम्यग् दृष्टिकोण एवं सम्यग्ज्ञान का होना आवश्यक मानती है। यहां ज्ञातव्य है कि पूर्वोक्त ज्ञान दर्शन आदि की प्राथमिकता की यह चर्चा उनके साधना क्रम की अपेक्षा से है न कि महत्त्व की अपेक्षा से है। साधना के क्षेत्र में ज्ञान, दर्शन, चारित्र एवं तप प्रत्येक का
१२ उत्तराध्ययनसूत्र - २८/३५ ।
१३ 'पण्णा समिक्ख धम्मं ।
तत्तं तत्तविणिच्छयं ।। '
१४ नवतत्त्व प्रकरण गाथा - ३१। १५ उत्तराध्ययनसूत्र - २८ / २६, ३०| १६ दशवैकालिक - ४ / १२ |
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• उत्तराध्ययनेसूत्र २३/२५ ।
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