Book Title: Uttaradhyayan Sutra
Author(s): Vinitpragnashreeji
Publisher: Chandraprabhu Maharaj Juna Jain Mandir Trust

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Page 661
________________ ५६६ भ्रमण एक ओर स्वयं को प्रदूषण से मुक्त रखता है, आरोग्यप्रद है वहीं दूसरी ओर . वाहन का प्रयोग न करने पर वातावरण को प्रदूषण से मुक्त रखता है । इस प्रकार वायु प्रदूषण से मुक्त होने के लिये जैनधर्म का अहिंसा आधारित आचार श्रेष्ठ साधन है । वानस्पतिक प्रदूषण और उसका संरक्षण पेड़-पौधे प्राणी की जैविक शक्ति है । अन्य प्राणी श्वसन प्रक्रिया में आक्सीजन . को ग्रहण करते हैं तथा कार्बनडाइआक्साइड छोड़ते हैं । जबकि वृक्ष कार्बनडाईआक्साइड ग्रहण करते हैं तथा आक्सीजन का त्याग करते हैं । इस प्रकार दोनों का अनुपात संतुलित रहता है लेकिन आज मानव स्वयं इस संतुलन को बिगाड़ रहा है। वन काटे जा रहें हैं, उनमें आग लगाई जा रही है । जिससे प्राकृतिक वातावरण दूषित होता है । वन बादलों को बरसने के लिये प्रेरित करते हैं तथा बहते हुये प्रवाह को रोकने का कारण बनते हैं | __ प्रभु महावीर ने 2600 वर्ष पूर्व वनस्पति में जीव है ऐसी उद्घोषणा की थी । कालान्तर में डॉ. जगदीशचन्द्रवसु ने भी प्रजनन, संवेदन, संवर्धन आदि के आधार पर वनस्पति में जीवत्व की सिद्धि को परिपुष्ट किया है ।। उत्तराध्ययनसूत्र में वनस्पतिकाय के जीवों का अत्यन्त विशद विवेचन किया गया है । उनकी अनावश्यक हिंसा से बचने की प्रेरणा दी गयी है ।(जैनधर्म में श्रावक के अनर्थदंडव्रत के अनुसार अनावश्यक एक पत्ता भी तोड़ना पाप माना गया है)।(तथा वन को काटने एवं जलाने का निषेध किया गया है ।) इस प्रकार जैनाचार वन संरक्षण में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है । प्लास्टिक से फैलता प्रदूषण प्लास्टिक पदार्थों का उपयोग आज पर्यावरण प्रदूषण का विशिष्ट कारण बन गया है । प्लास्टिक एक ऐसा पदार्थ है कि गलता नहीं है । अतः यह पृथ्वी, पानी, वायु, जीव-जन्तु सभी के लिये नुकसानदेह है । प्लास्टिक-प्रदूषण पर चर्चा करते हुये प्रो. सी. बी. बक्शी ने कहा है:- 'प्लास्टिक कचरे के बढ़ते ढ़ेर सिरदर्द साबित हो रहे है । गली, नदी नालों में फैंकी आपकी थैली पर्यावरण पर कहर ढ़ा रही है ।' प्लास्टिक थैलिया खाकर मरने वाले जीव-जन्तुओं की संख्या दिनोदिन बढ़ती जा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org


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