Book Title: Uttaradhyayan Sutra
Author(s): Vinitpragnashreeji
Publisher: Chandraprabhu Maharaj Juna Jain Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 669
________________ ६०४ व्यक्ति की मानसिकता कैसी होनी चाहिये । इसका विवेचन उत्तराध्ययनसूत्र के 'लेश्या अध्ययन में किया गया है । दूसरे के हित को ध्यान में रखकर ही व्यक्ति को कोई भी व्यवहार करना चाहिये । दूसरों को पीड़ा कष्ट, दुःख पहुंचा कर अपना स्वार्थ सिद्ध' करना निकृष्टतम मनोवृत्ति का परिचायक है । - उत्तराध्ययन के अन्तिम 'जीवाजीव विभक्ति' अध्ययन में जगत का अत्यन्त व्यापक एवं सूक्ष्म विश्लेषण किया गया है साथ ही हिंसा से विरत होने की प्रेरणा भी दी गई है । इसके अन्य अध्ययनों में व्यक्ति की विचारधारा को विशुद्ध बनाने के अनेक . उपाय प्रतिपादित किये हैं, जिसके माध्यम से बाह्य एवं आन्तरिक दोनों पर्यावरण की सुरक्षा की जा सकती है । भगवान महावीर के अहिंसा एवं अनेकान्तवाद एवं अपरिग्रह का सिद्धान्त यदि सूक्ष्मता से समझा जाय तो विश्व वैचारिक एवं भौतिक दोनों प्रदूषण से, छुटकारा पा सकता है । मानव के विचारों में अनेकान्तवाद तथा आचरण में अहिंसा की प्रतिष्ठा होनी चाहिये । अनाग्रह दृष्टि वैचारिक प्रदूषण से तथा अहिंसात्मक दृष्टि बाह्य , प्रदूषण से मुक्ति दिलाने में अत्यन्त सहायक है । पूर्वोक्त बिन्दुओं के परिप्रेक्ष्य में यह स्पष्ट होता है कि उत्तराध्ययनसूत्र की शिक्षाएं वर्तमान जीवन में व्याप्त विकृतियों को दूर करने में पूर्णतः सक्षम हैं। उत्तराध्ययनसूत्र के सूत्र, गाथाएं, अध्ययन, दृष्टान्त, और कथानक सभी मार्मिक तथ्य प्रस्तुत करते हैं। इसके प्रत्येक अध्ययन की पृष्ठ भूमि में भी विशिष्ट प्रेरणाएं सन्निहित हैं जो मानव जीवन की समस्याओं का निराकरण करने में और जीवन में सुख-शान्ति का संचार करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका प्रस्तुत करती है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682