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२. राज्य सम्बन्धी उपसर्ग :
___राजा आदि के द्वारा उपसर्ग किये जाने पर मुनि आहार ग्रहण न करे। ३. ब्रह्मचर्य की सुरक्षा :
बह्मचर्य व्रत की सुरक्षा के लिए मुनि आहार ग्रहण न करे। यदि आहार या सरस आहार के ग्रहण करने से वासना जागृत हो तो आहार का त्याग कर देना चाहिये। ४. प्राणीदया के लिए : .
मुनि के आहार के निमित्त यदि अन्य किसी भी प्राणी को कष्ट होता है, तो ऐसी परिस्थिति में मुनि आहार ग्रहण न करे। १. तपस्या के लिए : .
. पूर्वकृत कर्मों की निर्जरा का एक मात्र साधन तप है, अतः मुनि तपस्या के लिए आहार का त्याग करे। ६. शरीर व्युत्सर्ग के लिए :
मुनि शरीर का व्युत्सर्ग उसी परिस्थिति में करता है जब वह जान लेता है कि उसके शरीर एवं इन्द्रियों की शक्तियां क्षीण हो गई हैं, अब उस शरीर के द्वारा ज्ञान, दर्शन और चारित्र रूपी धर्म का पालन सम्भव नहीं हो पा रहा है, तब वह आहार का त्याग कर समाधिमरण हेतु संलेखना व्रत को धारण कर ले।
- इस प्रकार उत्तराध्ययनसूत्र में प्रतिपादित मुनि की दैनिक सामाचारी का विवेचन किया गया है । १०.३.२ दशविध सामाचारी
उत्तराध्ययनसूत्र में मुनि आचार के सन्दर्भ में दशविध सामाचारी का संक्षेप में वर्णन किया गया है, जो निम्न है15 -
mउत्तराध्ययनसूत्र २६/२-४ ।
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