Book Title: Uttaradhyayan Sutra
Author(s): Vinitpragnashreeji
Publisher: Chandraprabhu Maharaj Juna Jain Mandir Trust

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Page 655
________________ उत्तराध्ययनसूत्र के बत्तीसवें अध्ययन में बड़े मनोवैज्ञानिक रूप से एक-एक इन्द्रियों के विषयभोग किस प्रकार अतृप्ति के कारण दुःख प्रदान करते हैं इसका विस्तृत रूप से चित्रण किया गया है जिसकी चर्चा हम इसी ग्रन्थ के सातवें अध्याय के उपशीर्षक 'सांसारिक सुख सुखाभास है' में कर चुके हैं। अतः इससे सम्बन्धित चर्चा को हम यहीं विराम देना उचित समझते हैं। पर्यावरण का संरक्षणात्मक चिन्तन पर्यावरण प्रदूषण वर्तमान की ज्वलंत एवं जीवन्त समस्या है । पर्यावरण का सम्बन्ध मात्र परिवार, समाज, सस्कृति, साहित्य, कला आदि से ही नहीं. वरन् हमारे सम्पूर्ण अस्तित्व से है । अतः पर्यावरण प्रदूषण की समस्या जीव-सृष्टि के अस्तित्व के लिये सबसे बड़ी चुनौती है । आज वैज्ञानिक प्रगति एवं आर्थिक उन्नति के नाम पर प्राकृतिक सम्पदा का प्रचुर मात्रा में दुरुपयोग किया जा रहा है । उपभोक्तावादी विचारधारा के कारण साधनों का इतनी तीव्रता एवं प्रचुरता के साथ उपभोग हो रहा है कि प्राकृतिक सम्पदा की विशेष वस्तुयें - गैस-तैल आदि की बात तो दूर पेयजल एवं शुद्धवायु का मिलना भी दुष्कर होता जा रहा है । ___ प्रदूषण की विकट समस्या के निवारण हेतु यह आवश्यक हो गया है कि हम प्राचीन ग्रन्थों का अनुशीलन करें तथा उन तथ्यों को उजागर करें जिनसे पर्यावरण की सुरक्षा की जा सके । पर्यावरण का सम्बन्ध मात्र बाह्य जगत तक ही सीमित नहीं है वरन् मानसिक विचारधारा भी पर्यावरण को विशेष रूप से प्रभावित करती है । ___ उत्तराध्ययनसूत्र में जो अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य अपरिग्रह, शाकाहार, कषायमुक्ति, ध्यानसाधना आदि श्रमण एवं श्रावक की श्रेष्ठ चर्या का विवेचन है वह वर्तमान में प्राकृतिक एवं मानसिक पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से सर्वाधिक मूल्यवान हो गया है । ____आइये, विचार करें, पर्यावरण क्या है ? यह प्रदूषित क्यों होता है ? इसकी सुरक्षा कैसे की जा सकती है ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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