Book Title: Updesh Siddhant Ratanmala
Author(s): Nemichand Bhandari, Bhagchand Chhajed
Publisher: Swadhyaya Premi Sabha Dariyaganj

View full book text
Previous | Next

Page 8
________________ प्रथम पृष्ठ (द्वितीय पृष्ठ पं० भागचंद जी की वचनिका की हस्तलिखित प्रति Angu न. सिगार्डनमः सिप: । अथ नप देवा सिद्धांत रत्नमालानीमय्थ की बचनका लिषिए है। दो हा॥ वीतराग सर्वज्ञके बंदौपद सिय कार | जा सुपरम उपदेश मणिमाला त्रिभूवनसार सैंनिर्विशास्त्रपरिसमाप्त आदिप्रयोजनके अर्थ अपने इष्ट देव को नमस्कारक रि। उपदेश सिद्धांत रत्नमाला नाम ग्रंथ की बच निकालिषिये है। तहां इस ग्रंथ मे देव धर्मगुरु के श्रद्धनकामोष कनुपदेशनी के किया है। सो यह मोक्षमार्गका प्रथमकारए। है । जाते सा चेदेवगुरुधर्मकी प्रतीति होने ते ॥ यथार्थ जीवा दिकनिकायां नग्पानच्या चरन रूपमोक्षमार्ग की प्राप्ति होयतबजी व का कल्पा एराहोय है । तातैच्चायुको कल्पानका या कूं जानिशास्त्रका अभ्यासकरना योग्पहै। गाथा॥ अरिहंतदेवोसुगुरू। सुइधम्मंचपं चनवयारो।धरणकयत्थाएंगे। निरंतरंक्स इहिपय मि। ९॥याका अर्थ ।। च्यारिघातियाक ॥१॥ / मैनिकानां करित्र्यनं तज्ञांनां दिकक प्राप्तभए अरिहंतदेव व हरि तरंग मिथ्या दिश्ररु बहिरंग वस्त्रादिपरियहर हित से प्रसंसायोग्य गुरु अरु हिंसादिदोषरहिता लजिनभाषितधर्मरूपं चपरमेष्टीनिकावा व कथं च नमोकार मंत्रये पदार्थ किया है, आपका कार्य जननें से जेन तमपुरुष तिनि के सिदद्यविषैनिरंतरव से है ।। भावार्थ ॥ अरिहंतादिक के निमिततै मोक्षमार्गकी प्राप्तिहोय है। तातै निकट भव्य निहीकै इनिकेख रूपका विचार हो रहै। अन्य मिथ्यादृष्टीनिकै इनि की प्राप्तिहोनी दुर्व्वभ है । ९॥ गाथा || जयन कुण्यसि तव पर। नपढ सि एम्गु ए सिदद्दा सिएगो दाएँ । ता इतयं एरा सहि सिजा देवोइ ॥२॥ 8

Loading...

Page Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 ... 286