Book Title: Ud Jare Panchi Mahavideh Mai
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Simandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१९३ (ढाळ ५)
(राग गूडी) मुजनि पणि महाराजा रे, मोह महीपति स्वामी हुनडीउ घणुए, नयरी अवद्या मांहि वसि करी आणीए, दीओ मिथ्थात मंत्री करइए. कुमत सरोवर मांहि तेणि जीलाडीओ, ऊपरणाम धरिवासीओए, निद्रा अघृति मारि बेटी मोहनी, तेह सुमन रंग पासीओए. छद्म पुरोहित पासि रे नित मलतो रहुं निगुण सभाई परवर्या, महा धरस्यु मनमेलि प्रमाद तलवरि चरण क्रियादिक धन हर्युए. सुत जेठो जे काम तेह नईवसि पडयो पदि पदि पातिक बांधीया रे, प्रगट अनई प्रछन्न जे मई बहु कीआं श्रेणि तणी परिसंधीआरे. देखो नव नव रूप मनिनु परवसि पणई वनि मुखरीयल कर्याए, सेव्या शरीरइ पाप पर रमणि तणां तास वचनि निज मन ठाए. करी न कारव्यु कर्म धर्म विरोधीउ, श्रावक नइ मुनिवर तणाए, खंडथा करी उच्चार महाव्रत अणुव्रत किउँ विकरा काम धणो. राग तणई रसि मूठ आरति ध्यानि ए हुं माहरो करंतो फिर्युए. द्वेष तणई परभावि जीव अजीवस्यु रद् ध्यान मति पडयोओ. मोहराय परिवार पार न एणी परई मइ ते सर्व सगु कोए रमुनिशदिन ते साथ बाथ अहिओ जेम नाथ निरंजन विसर्याए.
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263