Book Title: Ud Jare Panchi Mahavideh Mai
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Simandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana

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Page 245
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२५ ॥ अथ श्री सीमंधरजीनो वृद्धस्तवन । मारी विनतडी अवधारो साहिब सीमंधर महाराज । त्रिभुवन साहिब अरज सुणीजो अरज सुणीजो महिर करीजो दरसण दीजो राज मारी वि० ॥१॥ आप वस्या माविदेह खेतरमें । हुइण भरत मोजार । ओमेलो किम होवे साहिब । एही सबल विचार मा०वि० ॥२॥ भरत विचाले परक्त आमो । नामे वैताढय सार । पचीश जोजनको उचो बे प्रभु । पचास जोजन विस्तार । मा०वि० ॥३॥ गंगा सिंधु दोनुं नदीयां । आमीबे किरतार ।। सहस अवावीसवी नदीयां । एवे उंचो विस्तार । मा०वि० ॥४॥ इणी आगळ परवत आमो । नानो हिमवंत नाम । ओक सहस्र बलिबावन जोजन बार कला अभिराम मा०वि० ॥५॥ खेत रहेमवंतवलि प्रभु आवो । जुग ज्यां केरो वास । ईकवीस सै वलि पांच योजन । पाच कलासु विलास मा०वि० ॥६॥ रोहितारोहितांसानाम । नदियाबे असराल । बप्पन सहसलि बीजी नदियां । आव्यु केम दयाल । मा०वि० ॥७॥ महाहिमवंत परवत आमो । मोटो अतिविस्तार । प्यार सहसदोय सैदसजोजन । दसकला मनुहार । मा०वि० ॥८॥ आव सहस सतच्यार अनोपम । इकवीस जोजन तास । एककला बलिरूप आनोपम । खेतरवे हरीवास । मा०वि० ॥९॥ हरिकंतानेहरिसलीला नदीयाबे परतक्ख बीजी नदीयां आभी को प्रभु । सहसवार एकलम्ब मा०वि० ॥१०॥ For Private And Personal Use Only

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