Book Title: Ud Jare Panchi Mahavideh Mai
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Simandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
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अनन्तवीरज अरिहंत ! सुणो मुज विनति, अवसर पामी आज हुँ आव्यो दिल छति; आतमसत्ता हारी संसारे हुं भन्यो, मिथ्या अविरति रंग कषाये बहु दम्यो. क्रोध दावानळ दग्ध मान विषधर डस्यो, माया जाळे बद्ध लोभ अजगर ग्रस्यो; मन वच कायाना, योग चपळ थया परवशा, पुद्गळ परिचय पापतणी अहनिश दशा. कामरागे अणनाथ्या, सांढ परे धस्यो, स्नेहरागनी राचे, भव पिंजर वस्यो; दृष्टिराग रुचि काम, पास समकित गणुं, आगम रीति नाथ ! न निरखुं निजपणुं. धर्म देखाडे मांड, भांड परे अति लघु, 'अचरे अचरे राम' शुक्र परें जपु कपट पटु नटुवा परे मुनिमुद्रा धरूं, पंच विषय सुख पोष सदोष वृत्ति भर. एक दिनमां नव वार 'करेमि भंते' करु, त्रिविध त्रिविध पच्चखाणे क्षण एक नवि ठरु मा साहस खग रीति नीति घणी कहुँ, उत्तम कुलवट वाट, नते पण निरवहुं. दीनदयाळ ! कृपाळ ! प्रभु महाराज छो, जाण आगळ शु कहेवु ? गरीब निवाज छो; पूरव घातकी खंड विजय नलिनावती; नयरी अयोध्या नायक लायक यतिपति.
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