Book Title: Ud Jare Panchi Mahavideh Mai
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Simandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
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२२२
श्री अनंतवीर्यस्वामिजीनु स्तवन
(१) अनंतवीरज अरदास सुणोने माहरी, मीठडी सूरती खास चाहुं हुं ताहरी; अरावत गति ओक अछे गज साहरी, दिजे दरिशण तुरत ज देव दया करी. समरूं ताहरु नाम सरागे फरी फरी, जाणे लहुं जगदीश वडारी चाकरी; निर्गमीये दुःखकाळ ईस्यो एह किण परी, धार न खंचे जेह थयो जन आतुरी. धन्य जळचरनी रीत बनी में आकरी, जळ विरहो न खमाय जे जाये ते मरी; प्रारथीया संभाळ न कीधी को खरी, जाणीसा ते प्रोत हमाशु ऊतरी. निवसो तुमची सेव कृपाने अनुसरी, पाळो प्रीतम प्रीत मयूरा घन परी, लेखे ते बहुं मोल गणुं एका-धरी, जब प्रीतमनो संग भजु हइडे ठरी. मुंह टाळेो दे जाय धरामां ते ठरी, न हुवे तसु धरि आपी प्रगोढी हाथरीः नयण कटोरी प्रेम सुधारसशुं भरी, कान्ति मिल्यो प्राणेश रूडी धरी चातुरी.
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