Book Title: Ud Jare Panchi Mahavideh Mai
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Simandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana

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Page 257
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only २३७ सगलां आतम जो क्षेत्र भेद टलै प्रभु, तो सरै सनमुखै भाव अभेदता, करि करू पर पूढि ईहा जेहनी, एवडी हुई हाजर हजूरी ते मिल्यै, नीपजे कितलो इन्द्र चंद्र नरिंद नौ, पद न मांगू प्रभु मुझ मन थकी, नवि विसरो खिण मात्र ॥१३ जि० जां' पूर्ण सिद्ध स्वभावनी, नविकरि सकू निज ऋद्धि । मागू तिल तां चरण सरण तुम्हारडां, एहीज मुझ नव निद्धि ॥। १४ जि०माहरी पूर्व विराधना, योगे पडयो ए भेद | पि वस्युं धरम विचारतां, तुझ नहीं छे भेद ॥ १५ ॥ जि० प्रभु ध्यान रंग अभेद थी, करि आत्म भाव अभेद । छेदी विभाग अनादि नो, अनुभवू स्वसंवेद्य ॥ १६ ॥ जि७ वीन अनुभव मीत ने, तू न करि पर रस चाह ! शुद्धात्म रस रंगी थयो, कटिं पूर्ण शक्ति अबाह ॥ १७ ॥ जि० जिनराज ४ सीमन्धर प्रभु, तें लह्यो कारण शुद्ध । हिव आत्म सिद्धि निपायवा, सी ढील करीये बुद्ध ॥ १८ ॥ जि० कारणे कारज सिद्ध नो, करवो घटे न विलंब | साधवी पूर्णानंदता. निज कर्तृ अवलंबि ॥१९ जि० निज शक्ति प्रभु गुण मै रमै ते करें पूण. नंद । गुणगुणी भाव अभेद थी, पीजीयै सम मकरंद ॥ २० ॥ ज० प्रभु सिद्ध वुद्ध महोदयी, ध्याने थई लयलीन । निज देवचंद पद आदर, निव्यात्म रस सुख पीन ॥ २१ ॥ ज० १. यब तक । २. तब तक । ३. मैं अपने अनुभव रूपी मित्रको विनती करता हूँ कि तू पर विषय की इच्छा न कर । ४. सीमन्धर भगवान् आत्मसिद्धि का अदभुत कारण है । ५. कारण रहने पर कार्यसिद्धि करने में कोई विलम्ब नहीं करना चाहिये । अपती कर्तृत्व शक्ति का अवलंबन कर पूर्णानंद स्वरूप को सिद्ध करना चाहिये । काज । राज ॥११ जि० स्वाम काम ॥ १२ जि० मात्र ।

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