Book Title: Ud Jare Panchi Mahavideh Mai
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Simandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana

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Page 256
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra -२३६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६) (श्री श्री सीमन्धर स्वामिजी ए देशी) सुख नी खांणि ॥ १ प्रभुनाम तु तीय लोक नो, प्रत्यक्ष त्रिभुवन भाण । सर्वज्ञ सर्व दर्शी तुम्हे, तुम्हे शुद्ध "जिनजी वीनती है एह ॥ आंकणी || प्रतु जीव जीवन भव्यना, प्रभु मुक्त तारे दरसन सुख बहु, तु ही जगति तुझ बिना हुं चउगति भम्यो, घरयां निज भाव में परभाव नौ, धन तेह जे जितु प्रह समै; तुझ वाणि अमृत रस लही, इक वचन श्री जिनराजनो, जीवन प्राण । थिति त्राण ॥ २ ॥ ज० वेब अनेक जाण्यौ नहीं सुविवेक ॥३ ॥ ज० देखें ज जिन मुख चंद | पामैं ते परमानंद ||४ | जि० नय गमा भंग प्रधान | जे सुणै रुचि थी ते लहै, निज तत्व सिद्य अमान ॥५ ॥ ज० जे खेत्र विचरो नाथजी, ते खेत्र अति सुपसत्थ' । तुझ विरह जे क्षण जाय छे, ते मानीयै अकयत्थर ॥६ जि० श्री वीतराग दंसण बिना, वीतोज काल अतीत | ते अफल मिच्छा डुक्कडं, तिविह तिविह नी शेति ॥७ जि० अकल प्रभु बात मुझ मननो सहू, जागो अछो जगनाथ । थिर भाव जो तुमचो लहुँ, तो मिलै शिवपुर साथ ॥१८ जि० प्रभु मिल्यै हुं थिरता लहू, तुझ विरह चंचल भाव ! इक वार जो तन्मय रमू तो करू प्रभु अछो क्षेत्र विदेह में, हु रहुं भरत तो पण प्रभुना गुण विषै, राखू चेतना १. जिस क्षेत्रमें आप विचरते हो, वह क्षेत्र ही सफल हैं । २. अकृतार्थ । 3 यद्यपि मैं दूर हूँ, फिर भी प्रभु के गुणों के प्रति मेरी सतत् दृष्टि हैं । स्वभाव ॥९ जि० For Private And Personal Use Only मझार । सार ॥१० जि०

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