Book Title: Ud Jare Panchi Mahavideh Mai
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Simandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२१३ निश्चय नय अवलंबताजी, नवि जाणे तस मर्म; छोडे जे व्यवहारनेजी, लोपे ते जिन धर्म. सी० ५४ निश्चय दृष्टि हृदय धरीजो, पाले जे व्यवहार, पुण्यवंत ते पामशेजी, भवसमुद्रनो पार. सा० ५५ तुरंग चढो जेम पामशेजी, वेळे पुरनो पंथ; मार्ग तेम शिवनो लहेजी, व्यवहारे निर्ग्रन्थ. सो० ५६ महेल चढंतां जिम नहिजी, तेह तुरंगनु काज; सकल नहि निश्चय लहेजी, तेम तनु किरिया साज, सो० ५७ निश्चय नवि पामी शकेजी, पाले नवि व्यवहार; पुण्यरहित जे एहवाजी. तेहनो कुण आधार. सो० ५८ हेम परीक्षा जेम हुएजी, सहत हुताशन ताप; ज्ञान दशा तेम् परखीए, जिहां बहु किरिया व्याप. सो० ५९ आलंबन विण जिम पडेजी, पामी विषमी वाट; मुग्ध पडे भवकूपमांजी, तिम विण किरिया घाट. सो० ६० चरित भणी बहु लोकमांजी, भरतादिकनां जेह; टोपे शुभ व्यवहारनेजा; बोधि हणे निज तेह. सो० ६१ बहु दल दीसे जीवनांजी, व्यवहारे शिवयोग; छोडी ताके पधारोजो, छोडी पंथ अयोग. सो० ६२ आवश्यक मांहे भाखिओजी, अह ज अर्थ विचार फळ संशय पण जाणतांजी, जाणोजे संसार. सो० ६३
जह;
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263