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१९३ (ढाळ ५)
(राग गूडी) मुजनि पणि महाराजा रे, मोह महीपति स्वामी हुनडीउ घणुए, नयरी अवद्या मांहि वसि करी आणीए, दीओ मिथ्थात मंत्री करइए. कुमत सरोवर मांहि तेणि जीलाडीओ, ऊपरणाम धरिवासीओए, निद्रा अघृति मारि बेटी मोहनी, तेह सुमन रंग पासीओए. छद्म पुरोहित पासि रे नित मलतो रहुं निगुण सभाई परवर्या, महा धरस्यु मनमेलि प्रमाद तलवरि चरण क्रियादिक धन हर्युए. सुत जेठो जे काम तेह नईवसि पडयो पदि पदि पातिक बांधीया रे, प्रगट अनई प्रछन्न जे मई बहु कीआं श्रेणि तणी परिसंधीआरे. देखो नव नव रूप मनिनु परवसि पणई वनि मुखरीयल कर्याए, सेव्या शरीरइ पाप पर रमणि तणां तास वचनि निज मन ठाए. करी न कारव्यु कर्म धर्म विरोधीउ, श्रावक नइ मुनिवर तणाए, खंडथा करी उच्चार महाव्रत अणुव्रत किउँ विकरा काम धणो. राग तणई रसि मूठ आरति ध्यानि ए हुं माहरो करंतो फिर्युए. द्वेष तणई परभावि जीव अजीवस्यु रद् ध्यान मति पडयोओ. मोहराय परिवार पार न एणी परई मइ ते सर्व सगु कोए रमुनिशदिन ते साथ बाथ अहिओ जेम नाथ निरंजन विसर्याए.
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