Book Title: Ud Jare Panchi Mahavideh Mai
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Simandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana

View full book text
Previous | Next

Page 210
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९० मणि कंचणमय रचना रतनी, त्रिगडई दीपइ सार, रचि सिंहासन सोवन मय ठव्यु, मणि गणि खचित उदार, चुमुखि शुगय दुखु विहंडणो, तिहां बईठो बलवंत, भेद धरमना चिहु पखि भविक नई, भाखइ श्री भगवत. धन ते भवि अण जननी जाईआ, जे तुम्ह वाणी सुणंत, सांभली जे पणि साची सदही, धन तुहवयण कुणंत, तुह पय पंकज अहनिसि सेवना, मधुकर परितुहपासि, चरण रजोरसि सिर पावनकरइ, धन ते मुनि गुण रास. ढाळ ३ (देस सोरठ द्वारापुरी ए ढाल-राग देशःख) मई प्रसु मधुकर वंछीई, तुह्म पद पद्म पराग रे, पणि सुभकर मधुकर विना, कहु किम लहीई लागे रे. चतुर चेतो दधि चंद्रमा, मुनि मन-कोकिल अंब रे, सीमंधर सुर शेखरो, योगी दवनि वलंब रे. रोरी जन धनपति तणी, प्रभु-तुलणा किम आवइ. तिम जन पायिं पूरीआ, तुहम दरिसण किम पाइ पंगु पुरुष सुरगिरि चढी, किम सुरतरु कल लेबई रे, तिम विभगा नर किम विभो, तुहम चरणाम्बुज सेवि रे हवइ प्रभु सुणि ओक वीनंती, मोह महीपति व्यापई रे, त्रिभोवन मांहि घणो करई, जनन अधिकई संताप रे. वली रे विशेषइ तुह्म तणो, नियमन मांहइ संभावाह रे, भरतनी भूमि मांहि रहिओ, आपणो आण चलावई रे. नयरी अविद्या नामईवली, तेणिं वासि असराल रे, गढ अज्ञान भोटो करिओ, तृष्णा खाडी विशाल रे, For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263