Book Title: Tulsi Prajna 2002 10
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 4
________________ धर्म और शास्त्र चिन्तनशील व्यक्ति यह मानने को तैयार नहीं होता कि सत्य जो है, वह सब शास्त्र की भाषा में बंध जाता है। फिर भी जो सम्प्रदाय और परम्परा को साथ लिए चलता है और शास्त्रों में विश्वास करता है, उसे फूल के साथ कांटें की चुभन सी सहनी होती है। जब-जब शास्त्रीय वाक्यों की दुहाई बढ़ती है और आत्मानुभूति घटती है, तब-तब शास्त्र तेजस्वी और धर्म निस्तेज हो जाता है। जब-जब आत्मानुभूति बढ़ती है और शास्त्रीय वाक्यों की दुहाई घटती है, तब-तबधर्म तेजस्वी और शास्त्र निस्तेज हो जाता है। - आचार्य महाप्रज्ञ तुलसी प्रज्ञा अक्टूबर-दिसम्बर, 2002 - - 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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