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लोकसामान्याधिकार
ते व्यवर मज्झ जेदु तिविधा संखेज्जजाणणणिमित्तं । अणवत्थ सलागा पडिमहासला चारि कुंडाणि ॥ १४ ॥ तानि अवरं मध्यं ज्येष्ठ त्रिविधा संख्येयज्ञाननिमित्तम् । अनवस्था शलाका प्रतिमहाशला चत्वारि कुण्डानि ।। १४ ।।
ते अवर । तानि सप्तापि स्थानानि नघम्यं मध्यमं उत्कृष्टमिति त्रिषा । संक्षयज्ञाननिमित्तं धनवस्था शलाका प्रतिशलाका महाशलाकेति च चत्वारि कुण्डानि कल्पयिष्यानि ॥ १४ ॥
गाथा : १४
गाथार्थ :- ये सातों ही स्थान जघन्य मध्यम और उत्कृष्ट के भेद से तीन तीन प्रकारके हैं। यहाँ संख्या का ज्ञान करने के लिये अनवस्था शलाका, प्रतिशलाका और महाशलाका ऐसे चार कुण्डों की कल्पना करना चाहिये ||१४||
विशेषार्थ :- संख्या प्रमाण के प्रधानतः संख्यात, असंख्यात और अनन्त इस प्रकार तीन भेद किये थे । उनमें से संख्यात का ज्ञान कराने के लिये यहाँ निम्नलिखित चार कुण्डों की स्थापना की जाती है। जैसे :
प्रथम अनवरर्था कुण्डे
शलाका कुण्ड
१५
प्रति
शलांका कुण्ड
महा शलाका कुण्ड
१ ( ब०, १० ) प्रती च नास्ति ।
इन चारों कुण्डों का व्यास एक लाख योजन का तथा उत्सेध ( गहराई ) एक हजार योजन का है। ये चारों ही कुण्ड वृत्ताकार गोल हैं ।
१ अनवस्था कुण्ड :-जिन कुण्ड का प्रमाण अनवस्थित है, वह अनवस्था कुण्ड है। प्रथम अनवस्था कुण्ड का व्यास एक लाख योजन का है, किन्तु दूसरे, तीसरे आदि अनवस्था कुण्डों का व्यास पूर्व पूर्व अनवस्था कुण्ड से संख्यात व असंख्यात गुणा है। गलाका आदि कुण्डों के समान इस अनवस्था कुण्ड का व्यास अवस्थित नहीं है। अतः इसका नाम अनवस्था कुण्ड है ।
२ शलाका कुण्ड : अनवस्था कुण्ड के एक बार भर जाने पर जिस कुण्ड में एक सरसों डाली जाती है, उसे शलाका कुण्ड कहते हैं । अनवस्था कुछ कितनी वार भर गया, उसका ज्ञान इस कुण्ड 'के द्वारा होता है, अर्थात् यह कुण्ड अनवस्था कुण्ड की शलाकाओं को बतलाता है अतः इस कुण्ड का नाम शलाका कुण्ड सार्थक है ।