Book Title: Tirthankar Varddhaman Author(s): Vidyanandmuni Publisher: Veer Nirvan Granth Prakashan Samiti View full book textPage 4
________________ के मध्य महावीर शान्ति के एक सशक्त विश्वास की भांति आये, जिन्होंने आम आदमी को निष्कण्टक सांस लेने का अवसर दिया। उन्होंने सहअस्तित्व और धार्मिक महिष्णुता के ऐसे आधार, जो कई सदियों पूर्व भारत में प्रौढ़ विकास कर चुके थे, किन्तु अब जिन्हें विस्मृत कर दिया गया था, पुनः स्थापित किये और उनकी सर्वमंगला प्रवृत्ति की और लोगों का ध्यान आकर्पित किया। एक महत्व की बात यह भी हई कि भगवान् महावीर ने अपना कार्य लोकभापा में किया, जहां किसी तरह का कोई व्यवधान नहीं था। मनिश्री की यह कृति पीस मांवें महावीर-परिनिर्वाण की एक समुज्ज्वल भमिका के रूप में प्रकाश में आ रही है । यह एक ऐसी पुस्तक है, जो कई-कई छोटी पुस्तकों का आधार बन सकती है, विशेपतः उन पुस्तकों का जो पाठ्यक्रमों में आती हैं और कई भ्रम और गलतफहमियों को जन्म देती है। श्री वीर निर्वाण ग्रन्थ प्रकाशन समिति, इन्दोर का यह परम सौभाग्य है कि उसे मुनिश्री की प्रस्तुत उल्लेख्य कृति के प्रकाशन का मुखद संयोग मिला है। जिस पाग्म-पुरुप में संपूर्ण भारतीय संत-परम्परा वातायन ढूंढ़ रही है, हमें विश्वास है उसकी यह बहुमूल्य कृति व्यापक रूप में समादृत होगी और लोक-जीवन को समुचित दिशा देने में मफलता प्राप्त करेगी। ममिति ने मुनिश्री की अन्य कई कृतियां प्रकाशित की हैं, जिनमें से "निर्मल आत्मा ही समयसार", "अहिंसाःविश्वधर्म", "आध्यात्मिक सूक्तियां", "समय का मल्य" बहख्यात और बहुपटित-चचित कृतियां हैं। यही कारण है कि इनमें से कई के द्वितीय संस्करण भी हुए हैं। इसके अतिरिक्त मुनिवर की मंगल प्रेरणा के फलस्वरूप समिति भगवान् महावीर के जीवन पर दो और महत्वपूर्ण ग्रन्थों का प्रकाशन कर रही है; ये हैं-मुनिश्री के प्रवुद्ध एवं व्यक्तिगत निर्देशन में पंडित पद्मचन्द्र शास्त्री द्वारा लिखित “तीर्थकर वर्द्धमान महावीर" तथा हिन्दी के सुप्रसिद्ध उपन्यासकार, कवि एवं पत्रकार श्री वीरेन्द्रकुमार जैन द्वारा प्रणीत बृहद् उपन्यास "अनत्तर योगी : तीर्थकर महावीर" । हमें विश्वास है समिति आने वाले वर्ष में मुनिश्री के मंगल शुभाशीष लेकर जीवन को प्रकाश और पावनता देने वाला सत्साहित्य प्रकाशित करने में सफल होगी। ___ अन्त में हम पंडित श्री नाथलालजो शास्त्री के प्रति भी समिति का आभार व्यक्त करते हैं, जिन्होंने अत्यधिक व्यस्त होते हुए भी एक खोजपूर्ण प्राक्कथन लिखकर हमें अनुगृहीत किया है। बाबूलाल पाटोदी दीपावली, १९७३ मन्त्रीPage Navigation
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