Book Title: Tirthankar Charitra
Author(s): Sumermal Muni
Publisher: Sumermal Muni

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Page 6
________________ स्वकथ्य तीर्थंकरों का जीवन-वृत्त जैन इतिहास की बहुत बड़ी निधि हैं। अनेक जीवन-वृत्तों में तत्कालीन सामाजिक व्यवस्थाओं एवं राजनीतिक परिस्थितियों का : सामयिक चित्रण भी मिलता है, उस समय की धार्मिक परम्पराओं, दार्शनिक मान्यताओं तथा राजनीतिक-सामाजिक चेतना का प्रतिबिम्ब भी सहज में परिलक्षित होता है। अनुभवी आचार्यों तथा मुनियों ने अपनी अनुश्रुति और अनुभूति को काव्यबद्ध करके भावी पीढ़ी पर बहुत बड़ा उपकार किया है। अपनी स्मृतियों को दीर्घजीवी बनाने का यही सबसे उपयुक्त साधन है। आचार्यों व मनस्वी मुनियों की सक्रिय सूझ-बूझ का ही परिणाम है कि आज भगवान् ऋषभ के बारे में भी हम अच्छी खासी जानकारी रखते हैं । यौगलिक काल के बाद मानव-संस्कृति का अभ्युदय कैसे हुआ? किससे हुआ? आदि प्रश्नों के समाधान हम हमारे ग्रन्थों के आधार पर आसानी से कर सकते हैं। दृष्टिवाद सूत्र के मुख्यतः पांच अंग है, उनमें चौथा अंग इतिहास का है। अर्थात्-जितना इतिहास है वह सारा दृष्टिवाद के अन्तर्गत आने वाला ज्ञान है, अतः इतिहास का ज्ञान आगम का ज्ञान है। इसकी अपनी उपादेयता है। जिसका इतिहास नहीं, उसका कुछ भी नहीं । प्रत्येक जाति, देश, वर्ग और दर्शन का अपना इतिहास होता है। इतिहास के बल पर ही व्यक्ति अपने से पूर्व की स्थितियों का अध्ययन कर सकता है और आगे बढ़ने की प्रेरणा पा सकता है। उपाध्याय ने अपने शिष्यों से पूछा-"शिष्यों ! मधुर है, किन्तु मिष्ठान्न नहीं है। बेजान में जान फूंकता है, किन्तु औषधि नहीं है । हृदय में गुदगुदी पैदा करता है, किन्तु नाटक नहीं है। बताओ वह क्या है?" एक विद्यार्थी ने तत्काल उत्तर दिया-"गुरुजी ! इतिहास।" सचमुच इतिहास मधुर है, संजीवन है। उसकी जानकारी हर दृष्टि से उपयोगी है। कुछ ज्ञातव्य श्वेताम्बर तथा दिगम्बर ग्रन्थों में तीर्थंकरों के जीवनवृत्त कुछ-कुछ भेद के साथ मिलते हैं। श्वेताम्बर आगम-ग्रन्थ भगवान के गर्भ में आने पर माता को आने वाले स्वप्नों की संख्या चौदह मानते हैं जबकि दिगम्बर ग्रन्थों में यह संख्या सौलह मानी गई है। कल्पसूत्र में स्वप्नों के नाम इस प्रकार हैं-१. गज २. सिंह ३. वृषभ

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