Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1 Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri View full book textPage 6
________________ ( " ) कृतिका एवं ज्ञानका लाभ दुनियाको हो । श्री न्यायाचार्यजीने जिस कठिन अंकी भाषा बनाने के लिए बीस वर्ष परिश्रम किया है, यदि वह अप्रकाशित रह जाय तो क्या प्रयोजन रहा ! इसलिए श्रीमाननीय पंडितजी से उन्होंने इस ग्रंथको प्रकाशित करने की अनुमति ली । श्री पंडितजीने भी बहुत आनंद के साथ अपने परिश्रमके सुमधुर फलको तत्वजिज्ञासु मज्योंको समर्पण करने की अनुमति प्रदान की। श्री सर सेठ साबको परमदर्ष हुआ | आपके हृदय में पंडितजीकी विद्वत्ता एवं महाके प्रति परमआदर है। वैसे तो आपके घरानेसे सदा ही विद्वानोंका सम्मान होता आ रहा है, जैन समाज में सोनी घरानेकी प्रतिष्ठा से अपरिचित एक भी व्यक्ति नहीं निकल सकता है। आपके पूर्वज स्वनामधन्य सेठ मूलचंदजी, रा. ब. सेठ नेमीचंदजी, एवं रा. ब. धर्मवीर सेठ टीकमचंदजी, सा. ने समाज व धर्मकी रक्षार्थ लाखों रुपयोंके व्ययसे जो कार्य किये हैं, ये इतिहासके पृष्ठों में अमिट रहेंगे । श्रीधर्मवीर सर सेठ भागचंदजी साबड़ भी अपने पूर्वजों के समान ही परमधार्मिक, विचारशील, गुरुभक्त, साहित्यप्रेमी एवं समाज के कर्णधार हैं। आज आपकी कार्यकुशलता एवं काही कारण आज कई वर्षों से मारतवर्षीय दिगंबर जैन महासमाने आपके नेतृत्वको धारण करनेमे अपना सौभाग्य समझा है । आपका प्रभाव समस्त समाजपर ही नहीं भारतवर्षीय सर्व क्षेत्रों में हैं। कई वर्ष आप केंद्रीय धारासभा के मेंबर रह चुके है। आपकी दूरदर्शिता एवं कार्यकुशलता ही कारण ब्रिटिश सरकारने आपको, रा. ब. कैप्टन, सर नाईट, 0. B. E. जैसे महत्वपूर्ण उपाधियोंसे सम्मानित किया है। आप केवल श्रीमंत नहीं हैं। श्रीमंत मी हैं। स्वाध्यायादिके द्वारा सदा चर्चा करते रहते हैं । जैनसिद्धांतकी तात्विक अकाय्य. सर्कणायोमे आपको परमश्रद्धा है । इसीलिए आपने श्री माननीय पंडितजीके अगाध पांडित्य और बीस वर्ष परिश्रमके प्रति परमआदर व्यक्त करते हुए उनको समुचित पुरस्कार देकर अपनी गुणग्राहकता, विद्वत्प्रेम, वासल्य और धनाधिपोचित उदारता के अनुसार सन्मानित किया है एवं इस महान् irst श्री आचार्य कुंथूसागर ग्रंथमालाको प्रकाशित करनेके लिए अर्पण किया है । श्रीपरमपूज्य स्व. आचार्य कुंथूसागर महाराजके प्रति भी सरसेठ साहबकी विशिष्ट भक्ति थी । आपके प्रति आचार्यश्री की प्रसादपूर्ण दृष्टि थी । यही कारण है कि आज वर्षो से ग्रंथमाला के मध्यक्ष स्थानपर रहकर आप इस संस्थाका सफल संचालन कर रहे हैं। आपके नेतृत्व में ग्रंथमालासे ऐसे महत्वपूर्ण ग्रंथका प्रकाशन होरहा है, यह समाजके लिए प्रसन्नता की बात है । श्रीपरमपूज्य प्रातःस्मरणीय, विश्वबंध आचार्य कुंथूसागर महाराजने अपनी प्रखर विद्वताके द्वारा आजीवन लोक कल्याण के कार्य किये। उनके पुण्यविहारसे गुजरात और बागडपांत पुनीत हुआ। लाखों लोगोंका उद्धार हुआ । उनका एकमात्र ध्येय था कि जैनधर्मको विश्वधर्म के रूपमे जनता जब देखेगी, तब उसका हित होगा । प्राणिमात्रका उद्धार करनेका सामर्थ्य जिस वीतराग धर्म विद्यमान है, यदि उसका परिज्ञान जनसाधारणको नहीं होता है तो इससे उसका पडा ही हित होगा । संसारके पत्तनगर्त में वह पडेगी । इस अंतर्वेदनासे उनकी आत्मा श्रस्त भी । शायद स्वार्थ, ईर्ष्या व द्वेषकी पकती हुई अग्निं भस्मसात होनेवाली अनंतजीवों की दयनीय दशाकोPage Navigation
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