Book Title: Tattvartha Kartutatnmat Nirnay Author(s): Sagranandsuri Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha View full book textPage 5
________________ पदार्थ और इन्द्रियादिसे समान बुद्धिजन्म होने पर भी धारणाके रंगका अनुकरण ही बुद्धि करती है. इससे योग्य धारणा रहितको अज्ञानहीं माना, याने जैसे अन्धे आदमी पदार्थको न देखनेसे यथायोग्य दृश्यपदार्थके विषयमें हेयोपादेय प्रवृत्ति नहीं कर सक्ते हैं. उसी तरह मृगतृष्णाको जलस्थान माननेवाले की तरह भी या कंचनको पितल और पितलको कंचन दिखनेवाले आदमीभी यथायोग्य हेयोपादेय फलको नहीं पा सक्त हैं. इसी तरह इधरभी स्याद्वादमुद्राकी और मोक्षध्येयकी धारणा नहीं रखनेवाला .आत्मप्रक्षसे अबोध या दुर्बोध है, इससे उसके ज्ञानको अज्ञान मानके प्रमाणके हिसाबमें ही नहीं लिया है. (१३) इतरदर्शनकारीको स्याद्वाद मंजूर नहीं करना है इससे इनको उपक्रमसे सूत्रोंकी व्याख्या करनी नहीं है सब वस्तुको नामादिचतुष्कमय. माननेवालाही उपक्रमादिकरूपसे व्याख्यान कर सके, इसी सबबस भगवान् उमास्वातिजीने जामस्थापनादिका सूत्र कहकर चतुष्ककी व्यापकता दिखाई, उसी तरह अनुगमनामक व्याख्यानमें उपयुक्त ऐसे संहितादिभेद इतरदर्शनकारोंने मंजूर किया, लेकिन स्याद्वाद मंजूर करने के डरसे ही उन लोगोंने नयकी दृष्टिसे व्याख्या मंजूर नहीं की है. यद्यपि एकनयदृष्टिसे के सभी मत है ही, लेकिन परस्पर विरुद्ध ऐसे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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