Book Title: Tattvartha Kartutatnmat Nirnay
Author(s): Sagranandsuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

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Page 3
________________ (६) तत् प्रमाणे, और आये परोक्षं, प्रत्यक्षमन्यत्, ये तीन सूत्र .: भी इतस्दर्शनोंके अधिकारसे है। (७) मत्यादिज्ञानोंका सूत्रोंमें द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाचसे विषय दिखाया है, तब तत्वार्थकारने सिर्फ द्रव्य भाव ही दिखाया, इसका भी क्षेत्र और कालको द्रव्य मान कर तर्कानुसारियों की अनुकूलताही तत्व है. .... (८).अधिगमके कारणोंके दिखाते जो तीन सूत्र 'प्रमाणनयै रधिपमा 'निर्देश' 'सत्संख्या' ऐसे दिखाये हैं यह तर्कानुसारियोंके ही अनुकूलता के लिये है। ....... शास्त्रामं पृथ्वी, जल, वायु और अग्निको जड माने हैं, लेकिन इधर इनको सचेतन दिखाये हैं. वैज्ञानिकलोगभी वनस्पति और पृथ्वीको अब सचेतन मानते हैं। (अन्यमजहबकालोंने इन्द्रिय और विषयके वैषम्यसे ही पदार्थज्ञानका वैषम्य माना है, लेकिन भगवान श्रीउमास्वातिजीने पदार्थ और इन्द्रियको वैषम्यतान होने पर भी ज्ञाताकी धारणाके कारणसभी ज्ञानविषमता मानी है, अन्यमजहबकालोंने भिन्न इन्द्रियका सुगमत् ज्ञान हो जाय उसको रुकने के लिये ज्ञानकी युगपत् अनुत्पत्ति के लिये अणु ऐसा.मन मान लिया, और वह अणु.ऐसा मनमानाके जिस इन्द्रियके साथ संयुक्त हो उसका ज्ञान उत्पन्न होके, ऐसा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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