Book Title: Tattvartha Kartutatnmat Nirnay Author(s): Sagranandsuri Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha View full book textPage 2
________________ २ (१) इतरदर्शन कारोंने जब अपने दर्शन में और दुसरे में मार्गशब्द लगाया तब इसमें भी मोक्षमार्गशब्द से कहा गया. याने मोक्षशब्द के साथ मार्गशब्द शरीक किया गया है. (३) तत्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनं इसका भेद दिखानेका सूत्र अलग रखकर यह सूत्र लक्षणकी तोरसेही अलग कियाअन्यथा 'निसर्गाधिगमाभ्यां तत्रश्रद्धा सम्यक्त्वं' इतनाही कह देते. दर्शनशब्दभी इसमें सूचक ही है । (४) इतरदर्शनकारों केवल संहितादिसे व्याख्या मानते हैं, तब तत्वार्थकारने नामादिनिक्षेपसे व्याख्या दिखानेको नामस्थापना० सूत्र कहा । (५) ज्ञानशब्द से शुद्धज्ञान रखकर सामान्यसे बोध दिखानेके लिए अधिगमशब्द रख कर ' प्रमाणनयैरधिगमः ' ऐसा कहा. या बोधशब्द नहीं रखके अधिगमशब्द अन्यदर्शनकी प्रसिद्धिसे होगा, कभी तीसरे सूत्रमें अधिगमशब्द से भी उपदेश लिया गया है उसके संबंध से • प्रमाण और नयसे याने तन्मयवाक्योंसे उपदेश होता है असा मान ले तब भी यही हुवा कि अन्यदर्शनकार अपनी प्ररूपणा प्रमाणसे है ऐसा मानते हैं, लेकिन ये लोग केवल नयादिसे ही प्ररूपणा करनेवाले हैं और जैनको तो प्रमाण और नय दोनोंसेही प्ररूपणा इष्ट है, इस तरहसे भी यह दर्शन के हिसाब से सूत्र है । Jain Education International 3 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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