Book Title: Tattvagyan Vivechika Part 02
Author(s): Kalpana Jain
Publisher: A B Jain Yuva Federation

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Page 173
________________ कर्म का, एक समय का स्थिति-बंधवाला ईर्यापथ आस्रव होता है; अन्य किसी भी कर्म का तथा अन्य किसी भी स्थिति वाला बंध यहाँ नहीं है । प्रश्न ६० : उपशांत-मोह नामक इस ग्यारहवें गुणस्थान का काल स्पष्ट कीजिए । उत्तर : इस गुणस्थान का सामान्य समय तो यथायोग्य एक अंतर्मुहूर्त ही है; परन्तु आयु की विविधता के कारण इसमें भी विविधता हो जाती है। वह इसप्रकार है - इस गुणस्थान को प्राप्त करते ही आयु-क्षय हो जाने पर इस गुणस्थान का जघन्य-काल एक समय प्राप्त होता है। इसका उत्कृष्ट-काल यथायोग्य एक अंतर्मुहूर्त है तथा आयु-क्षय की अपेक्षा ही दो समय से लेकर यथायोग्य एक अंतर्मुहूर्त में एक समय कम पर्यंत सभी समय इसके मध्यमकाल-भेद समझना चाहिए । प्रश्न ६१ : उपशांत-मोह नामक इस ग्यारहवें गुणस्थान का गुणस्थान की अपेक्षा गमनागमन स्पष्ट कीजिए । उत्तर : यह उपशम-श्रेणी का अंतिम गुणस्थान होने के कारण यहाँ से ऊपर गमन नहीं है। गुणस्थान के काल का क्षय होने पर यहाँ से नियमतः दशवें उपशमक सूक्ष्म-साम्पराय गुणस्थान में तथा आयु-क्षय की स्थिति में यहाँ से सीधे चौथे अविरत सम्यक्त्व में गमन होता है। आगमन की अपेक्षा अन्य मार्गों का अभाव होने से एकमात्र उपशमक सूक्ष्म-साम्पराय नामक दशवें गुणस्थान से ही यहाँ आगमन होता है। इसे हम संदृष्टि द्वारा इसप्रकार समझ सकते हैं. — ग्यारहवें उपशांत- मोह गुणस्थान का गमनागमन गमन मरणोपरांत चौथे अ. स. में ११वाँ उपशांत मोह → १० वें उप. सू. सां. में आगमन _१०वें उपशमक सूक्ष्म सां. से प्रश्न ६ २ : क्षीण - मोह नामक बारहवें गुणस्थान का स्वरूप स्पष्ट कीजिए । उत्तर : इस गुणस्थान का स्वरूप स्पष्ट करते हुए आचार्य नेमिचंद्र सिद्धान्तचक्रवर्ती अपने गोम्मटसार जीवकांड नामक ग्रन्थ में लिखते हैं - तत्त्वज्ञान विवेचिका भाग २ / १६८. -

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