Book Title: Tattvagyan Vivechika Part 02
Author(s): Kalpana Jain
Publisher: A B Jain Yuva Federation

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Page 233
________________ लिए कहीं कोई अवसर नहीं होने | नहीं होने के कारण उन्नति - अव से पुरुषार्थ कुंठित हो जाता है। ५. मात्र इसे मानने पर चोरी, जारी आदि पाप सिद्ध नहीं होने से सर्वत्र पशुवत प्रवृत्तिआँ हो जाएंगी। नति का प्रश्न ही नहीं रहता है। मात्र इसे मानने पर भोगोपभोग करना, सेवा आदि करना सम्भव ही नहीं होगा । इत्यादि प्रकार से इन दोनों में अंतर है। प्रश्न ८ : चारों प्रकार के एकान्तों का सयुक्तिक निषेध कर स्याद्वाद की सिद्धि कीजिए । उत्तर : आचार्यश्री समन्तभद्र स्वामी ने आप्तमीमांसा की प्रारम्भिक कारिकाओं में चार प्रकार के एकान्तों की चर्चा करके उनका निराकरण किया है। उन्होंने ९ से ११वीं कारिका पर्यंत पहले भावैकान्त, १२वीं में दूसरे अभावैकान्त तथा १३वीं कारिका में तीसरे उभय एकांत और चौथे अवाच्यता एकांत की चर्चा करके १४ से १६वीं कारिका पर्यंत स्याद्वाद की सिद्धि की है। वह इसप्रकार १. भावैकान्त: पदार्थों का सर्वथा अस्तित्व ही स्वीकार करना भावैकान्त है। इस सर्वथा भावैकान्त का निषेध करते हुए वे लिखते हैंभावैकान्ते पदार्थानामभावानामपह्नवात् । सर्वात्मक- मनाद्यन्त- मस्वरूप- मतावकम् ॥९॥ कार्यद्रव्यमनादि स्यात्, प्रागभावस्य निह्नवे । प्रध्वंसस्य च धर्मस्य, प्रच्यवेऽनन्ततां व्रजेत् ॥ १०॥ सर्वात्मकं तदेकं स्यादन्यापोहव्यतिक्रमे । अन्यत्र समवाये न व्यपदिश्येत सर्वथा ॥ ११ ॥ पदार्थों का सर्वथा भाव एकांत स्वीकार करने पर अर्थात् पदार्थ मात्र हैं ही - ऐसा सर्वथा स्वीकार करने पर अभावों का सर्वथा निषेध हो जाने के कारण सभी सबरूप हो जाएंगे, प्रत्येक कार्य अनादि या अनन्त हो जाएगा, किसी का कोई निश्चित स्वरूप नहीं रहेगा; परन्तु हे भगवन ! यह आपको मान्य नहीं है । - अभाव चार प्रकार के हैं - प्रागभाव, प्रध्वंसाभाव, अन्योन्याभाव, अत्यंताभाव । वर्तमान पर्याय का भूत कालीन सभी पर्यायों में नहीं होना, तत्त्वज्ञान विवेचिका भाग २ / २२८ I

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