Book Title: Tattvagyan Vivechika Part 02
Author(s): Kalpana Jain
Publisher: A B Jain Yuva Federation

View full book text
Previous | Next

Page 232
________________ ३. इसमें ज्ञान मुख्य होता है । ४. इसमें विशेषण या विशेषता सिद्ध की जाती है। ५. इसका बाधक कारण एक ही है इसके बाधक कारण अनेकों हैं । - 'उपलब्ध नहीं होने के कारण' । ६. इसमें सर्वज्ञता सिद्ध की जाती है। ७. इसकी सिद्धि होने पर ही विशेष सर्वज्ञ सिद्धि होती है। ८. आत्मार्थी के लिए यह जानना प्रत्येक व्यक्ति के संदर्भ में यह जानना १. इसमें वस्तु की सर्वथा सत्तामात्र स्वीकार की जाती है। इसमें मत - प्रवर्तक मुख्य होता है । इसमें विशेष्य सिद्ध किया जाता है । अत्यंत आवश्यक है। ९. इससे व्यक्ति की पूज्यता - अपूज्यता का निर्णय नहीं होता है। १०. धर्मायतन आदि धार्मिक व्यवहार का यह मूलाधार नहीं है। इत्यादि प्रकार से इन दोनों में अन्तर है। प्रश्न ७ : भावैकान्त और अभावैकान्त में पारस्परिक अन्तर स्पष्ट कीजिए । उत्तर : ये दोनों मिथ्या-मान्यताओं के ही भेद होने पर भी इनमें कुछ अंतर है; जो इसप्रकार हैभावैकान्त - २. मात्र इसे मानने पर प्रागभाव, प्रध्वंसाभाव, अन्योन्याभाव, अत्यन्ताभाव सिद्ध नहीं होते हैं। ३. मात्र इसे मानने पर द्रव्य, गुण, पर्यायों की अनन्तता, पृथक्ता सिद्ध नहीं होती है। ४. मात्र इसे मानने पर परिवर्तन के इसमें सर्वज्ञवान सिद्ध किया जाता है । इसके बिना भी सामान्य सर्वज्ञ सिद्धि हो जाती है। आवश्यक नहीं है। इससे व्यक्ति की पूज्यता - अपूज्यता का निर्णय होता है। धर्मायतन आदि धार्मिक व्यवहार का यह मूलाधार है। अभावैकान्त इसमें वस्तु की सर्वथा असत्ता ही स्वीकार की जाती है । मात्र इसे मानने पर किसी भी वस्तु की सत्ता सिद्ध नहीं होती है। मात्र इसे मानने पर किसी भी प्रकार का व्यवहार, प्रवृत्तिआँ चर्चा-वार्ताएँ भी सम्भव नहीं हैं । | मात्र इसे मानने पर वस्तु ही सिद्ध • देवागम स्तोत्र (आप्तमीमांसा) / २२७.

Loading...

Page Navigation
1 ... 230 231 232 233 234 235 236 237 238