Book Title: Tattvagyan Vivechika Part 02
Author(s): Kalpana Jain
Publisher: A B Jain Yuva Federation

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Page 190
________________ इत्यादि अनेक प्रकार से इन दोनों में पारस्परिक अंतर है। प्रश्न ७६ : उपशांत-कषाय और क्षीण-कषाय नामक क्रमश: ग्यारहवें और बारहवें गुणस्थान का अंतर स्पष्ट कीजिए। उत्तर : इन दोनों का पारस्परिक अंतर इसप्रकार है - उपशांत कषाय क्षीण कषाय १. गुणस्थान क्रम में यह ग्यारहवाँ | गुणस्थान क्रम में यह बारहवाँ गुणगुणस्थान है। ..... | स्थान है। २. इसमें मोहनीय की इक्कीस इसमें मोहनीय की इक्कीस प्रकृप्रकृतिओं का उपशम है। . तिओं का क्षय हो गया है। ३. यहाँ से उन्नति नहीं होती है, । यहाँ से नियमत: उन्नति हो तेरहवें नियम से नीचे ही लौटते हैं। । गुणस्थान में जाते हैं। ४.इसमें द्वितीयोपशम और क्षायिक इसमें क्षायिकसम्यक्त्वही रहता है। में से कोई भी एक सम्यक्त्व है। । ५. इसमें औपशमिक चारित्र है। इसमें क्षायिक चारित्र है। ६. इन्हें एक अपेक्षासे मध्यम अंत- | ये उत्कृष्ट अंतरात्मा ही कहलाते हैं। रात्मा भी कहा गया है। ७. ये उपचार से मोह-मुक्त हैं। ये वास्तव में मोह-मुक्त हैं। ८. यहाँ शुक्लध्यान का दूसरा भेद | यहाँ शुक्लध्यान का दूसरा भेद नहीं माना है। | होता है। ९. यथायोग्य अंतर्मुहूर्त होने पर भी | यथायोग्य अंतर्मुहूर्त होने पर भी इसका काल क्षीण-कषाय की इसका काल उपशांत-कषाय की अपेक्षा अधिक है। अपेक्षा कम है। १०. यहाँ मरण सम्भव है। यहाँ मरण नहीं होता है। ११. यह मोक्ष जाने पर्यंत काल में | यह मोक्ष जानेवाले प्रत्येक जीव के अधिकाधिक चार बार होता है। । मात्र एक बार ही होता है। १२. इसे प्राप्त करने के बाद भी | ये तद्भव मोक्षगामी ही होते हैं। पुरुषार्थ की हीनता आदि कारणों से कुछ कम अर्ध पुद्गल परावर्तन - चतुर्दश गुणस्थान/१८५ -

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