Book Title: Tattvagyan Vivechika Part 02
Author(s): Kalpana Jain
Publisher: A B Jain Yuva Federation

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Page 211
________________ पाठ ९: देवागम स्तोत्र (आप्तमीमांसा) प्रश्न १ : आचार्य समन्तभद्र स्वामी का व्यक्तित्व-कर्तृत्व लिखिए। उत्तर :अन्य जैनाचार्यों के समान लोकैषणा से अत्यंत दूर रहनेवाले स्वामी समन्तभद्राचार्य का जीवन-परिचय भी वास्तव में अज्ञात जैसा ही है। इस कलिकाल में जैन और जैनेतरों के मध्य सर्वज्ञ भगवान की सर्वज्ञता का विशद विवेचन करने के कारण कलिकाल-सर्वज्ञ नाम से सुविख्यात तथा जैनदर्शन के सभी पक्षों को अपनी लेखनी से समृद्ध करनेवाले परमपूज्य समन्तभद्र स्वामी ने अपने विषय में कहीं कुछ भी नहीं लिखा है। शिलालेख या परवर्ती साहित्य में उन संबंधी जितना जो कुछ भी मिलता है, वह वास्तव में नगण्य-प्राय ही है। आप कदम्ब वंश के क्षत्रिय राजकुमार थे। आपके बचपन का नाम शांतिवर्मा था। आपका जन्म कावेरी नदी के किनारे स्थित दक्षिण भारत के उरगपुर नामक नगर में विक्रम सम्वत् द्वितीय शताब्दी के पूर्वार्ध में हुआ था। आपने अल्पवय में ही जैन दिगम्बर मुनि दीक्षा धारण की थी।दिगम्बर जैन साधु होकर आपने घोर तपश्चरण किया तथा अगाध ज्ञान भी प्राप्त किया। आपजैनसिद्धान्त केतलस्पर्शी विद्वान होने के साथ ही तर्क, न्याय, व्याकरण, छन्द, अलंकार, काव्य इत्यादि विषयों के भी अद्वितीय विद्वान थे। आपने अपनी असामान्य वादशक्ति के कारण अनेक स्थानों पर विहारकर अज्ञानीजनों का मद नष्ट किया था। एक स्थान पर आत्मविश्वास के साथ आप स्वयं लिखते हैं - “वादार्थी विचराम्यहं नरपतेर्शार्दूलविक्रीडितम् - हे राजन! वाद के लिए मैं शार्दूल/शेर के समान विहार करता हूँ।" इसीप्रकार अन्यत्र भी आप लिखते हैं - “राजन! यस्यास्ति शक्तिः, स वदतु पुरतो जैननिर्ग्रन्थवादी - हे राजन ! मुझ जैन निर्ग्रन्थवादी के सामने जिसकी शक्ति हो, वह बोले !!" इसप्रकार आपने अनेक स्थानों पर वाद-विवाद के माध्यम से सर्वज्ञता - तत्त्वज्ञान विवेचिका भाग २/२०६ -

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