Book Title: Swadhyay 1994 Vol 31 Ank 01 02
Author(s): Mukundlal Vadekar
Publisher: Prachyavidya Mandir Maharaja Sayajirao Vishvavidyalay

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Page 80
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org धर्मेन्द्र भ. भारतर (मधुर) G+ ‘ સર્જયા જ઼ી ખૂબિયાં 'માં કવિ પ્રરમાં જેવી મનની સધ્યાની સૌન્દર્યની ખૂબીઓ પર ફીદા થઈ જાય છે. સાંવરા ન જાને નંદુલાલ' નામક પ૬માં અનુપમ મુરારી નોંદલાલ પ્રત્યેને કવિને भक्तिभाव तो थयो छे'गहके छह दोनो रासभा पनघट पर ा गयापार ने મટી ફાડનાર કનૈયાને ' જાદુગર સીવાલા કહે છે. ' तुम संग कैसे आउ' मां दृष्य अनैयाने પોતાની નકલી કહીને કવિએ નિર્દય વિનતી કરી છે. C 'अनजान लडका नाम समभावना સમયમાં અજાણ્યા ડંકા ગાંધીનું મારું શોચત્ર— नहीं कमीश अंग पे न पहने हुए मोजरी, त्वचा चिकनि चासनी, अँगुलियाँ कुरी काँचरी, सुकेश खमदार, गोलमुख, गाल खड्डा पड़ा । આપીને કવિએ આલેખ્યુ છે- अजान लडका, न आज अनजान है विश्वका, उनके दुःखके उचित देखे हुए, कभी निज निवासी तो कभी समूह का है मा नहीं बस प्रसंग के, प्रगति गीत गाये हुए उनके शिवरात्रियाँ प्रथमभी मनाए हुए प्रभु म अधिकार का कब कोहके स्नेहका । देशभक्तिनुं जीन' नधिपात्र गीत हे આસ્વાદ લઈએ—— वाटा कैसा चढा है अगष्ट का डेर 4 अंधेरों के महल पे खंडेरों के उमरी उजरी पूर्णिमा के चद्रसा, वावटा कैसा चढा है अगष्टका । जोरसे मुहीदों के खून से शहीदों के राती राती चनोठी के रंगकाला वाटा कैसा चढा है अगष्टका । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अरमां क्षणाये ' अगष्ट का वावटा मस्त कर्मवीरों की बोलती तस्वीरो सी नीली नीली हरियाली निकुंज सा वावटा कैसा चढा है अगष्ट का । For Private and Personal Use Only "

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