Book Title: Swadhyay 1994 Vol 31 Ank 01 02
Author(s): Mukundlal Vadekar
Publisher: Prachyavidya Mandir Maharaja Sayajirao Vishvavidyalay

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Page 85
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra સદ્ભુત કવિ પતીલ'નાં અપ્રગઢ હિંદી-અંગ્રેજી શીતકાવ્યો जहाँ शाहद है बिखरे हर्द हर्द, एक बहती है सरिता प्रणे प्रणे ॥ जिसने सांखी है शौकसे मुश्किलें, औ काही है सुब्र से मंजिले, खुद चलाके उसका ध्येय आता है, कि जाप जपता था वह उदे उदे । X X X मैं कदम कदम यमुना देखूँ वह हर पत्ते में कनै कनै । www.kobatirth.org ૧૦ ૧૧ આત્મલક્ષી રચનાઓો-સમાપન- " जी जान है' नाम वक्षी तर्ज मां कविता पोताना भुवननी प्रथा-व्यथा आहे--- मौजे कहती है दरिया से कि दरिया हो जाउ में । यं जिंदगी कहती है मेरी मुझे कि सपना हो जाउँ मै ॥ आकाशवासी श्री तारलो, जरा हमको भी निहार लो कि हमसे जिया नही जाता, जी जात है । मौंजे • या तो किसीका प्यार हो या किसीका धिक्कार हो, कि ऐसा जिया नहीं जाता ख्याल क्यूँ इसका बगर नाम जी जात है | मौजे ० सताता है, दृष्टिसें जी नहीं आता है लिया नहीं जाता जी जात है ॥ मौजे ० कौन जाने किसका मैं बंदा है व किसकी तलाश में अंधा हूँ जबां से कहा नहीं जाता जी जात है ।। मौजे ० जिसके एक बोल से शयदा हूँ व जिसकी एक मौजशा पयदा हूँ वह दरिया देखा नहीं जाता, खो जात है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only ૧

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