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સદગત કવિ પતીલ’નાં અપ્રગટ હિંદી-અંગ્રેજી ગીતકા
या वि गद्धीयाँ मिट गइयां आशावश लूट
'जलती होली भीर खुली वही' गइयां ' मानु मालेमन रे छ.
સમાજલક્ષી રચનાઓ –
सभासक्षा २२यना। ४। 'मतलबी दृष्टि 'भा हुन्यकी स्वाथा तिनी शयतानियतना भाव २ पायो, 'बाझारमै चाल बाझी'तिमा नी वेपारी सतरना यानी વાત કરી એવી વ્યક્તિઓને ગોઝારા ધૂતારાને લૂંટારા કહી અવલે ઇ----
होशियार होते हैं खो के इनाम,
पायमाज होते हैं माल के धनी. ‘क्रिया कांडों का मोह' मने 'ठग भगत' नाम व्योमा धाभि याडोनी व्यर्थताना निश थयो छे. “मुझरिम की हालत हो गई 'भो हुन्यकी २४ता ने अन्यायर्नु नि३५ ‘की मुफ्तमें बरबाद सारी जिंदगी इन्साफकी 'मां थयु छ. 'तकलेदी दागीने 'म त्रिमहीना ને આડંબર 1 કવિની નફરત પ્રગટ થઈ છે. એમાં કથન છે
अच्छा खासा चहेरा कामका कौनसा
देखते ही जो कलेजा जलाये ? ऐसी चीजको कोई क्या करे ?
जो हरेककी तेइनात कराये १ 'अकिंचनों की राजधानी' मा विना अतिप्रेम अट थयो छ भने प्रतिने मायनानी રાજધાની તરીકે કવિએ જે ગણાવી છે તે નોંધપાત્ર છે
कँवल खीले, भ्रमर गुंजे - क्या मनोहरी दिखती है आम्रकुंजे ? सुनहली शाखे
लुभाती आँखे ललित बेलियाँ लचे, प्रकृति साज क्या सजे ?
उपवन है बहारमें
मन प्रवृत्त प्यारमें खाली खाली मधुशाला
ढूँढे कौन उसे-काहे ? मिले कोइ जो शौकवाला
यहाँ अनोखी इक सभा हे बन मेवा, मधुर पानी अकिचनों की राजधानी
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