Book Title: Supatra Kupatra Charcha Author(s): Ambikadutta Oza Publisher: Aadinath Jain S M Sangh View full book textPage 4
________________ (2) का उल्लंघन कर भगवती की प्रति वहां नहीं रखी। उसे लेकर विहार कर गये। यह समाचार पाकर पूज्य श्री रघुनाथजी महाराज ने दो शिष्यों को भेजकर भीखणजी से वह भगवती की प्रति मँगा ली। गुरुजी का इस प्रकार अपने पर अविश्वास का व्यवहार भीखणजी को सहन नहीं हुआ और उन्होंने एक नवीन-मत निकालकर गुरुजी को नीचा दिखाने का दृढ़ संकल्प किया। मेवाड़ के राजनगर नामक ग्राम में भीखणजी का उस वर्ष चतुर्मास हुआ। वहीं उन्होंने अपने पूर्व संकल्पित मत की स्थापना करने के उद्देश्य से मानवता के और शास्त्र के विरुद्ध प्ररूपणा आरम्भ कर दी। मान्यताओं के कुछ नमूने 1. अग्नि में जलते हुए जीव की रक्षा करना एकान्त पाप है। 2. कूप में गिरते हुए प्राणियों की रक्षा करना एकान्त पाप है। 3. तालाब में डूबते हुए प्राणी की रक्षा करना एकान्त पाप है। 4. किसी ऊँचे स्थान से गिरते हुए प्राणी की रक्षा करना एकान्त ___ पाप है। 5. जीवों की शान्ति के लिए धर्म का उपदेश करना जैन धर्म का सिद्धान्त नहीं है। अन्य तीर्थियों की यह मान्यता है। अतः जो जैन होकर जीवों की शान्ति के लिए धर्म का उपदेश करना अपना कर्तव्य मानता है, वह जैन धर्म का रहस्य नहीं जानता है। उसकी बुद्धि अशुभ कर्म का उदय होने से भ्रष्ट समझनी चाहिये।Page Navigation
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