Book Title: Supatra Kupatra Charcha Author(s): Ambikadutta Oza Publisher: Aadinath Jain S M SanghPage 26
________________ (24) । शास्त्रकार तो कहीं भी श्रावक को कुपात्र नहीं कहते। दूसरे, किसी कारण से भी श्रावक कुपात्र सिद्ध नहीं होता है। तथापि तेरहपत्थी लोग श्रावक को कुपान कहते हैं यह उनका या तो मिथ्याभिनिवेश-दुशाग्रह है अथवा जगत् में एकमान हम ही सुपात्रा माने जायें, शेष सब लोग कुपात्र माने जायें, जिससे जगत में एकमात्र हमारी ही पूजाः प्रतिष्ठा हो दूसरे की न हो, यह स्वार्थ बासना ही ऐसी मान्यता का कारण हो सकती है। प्रिय बन्धुओ ! इस मान्यता का दुष्परिणाम यह हुआ है कि औरतें अपने पति को कुपात्र मानकर उसकी सेवा शुश्रूषा या विम्य करने में पापमानती हैं। तथा पुत्र अपने पिता की और छोटी भाई अपने बड़े भाई की सेवा शुश्रूषा या विनय आदि 'मैं पाप मानता है। स्वभावतः उससे उसकी विरक्ति हो जाती है और यह उस कार्य की नहीं करना चाहता है। यदि किसी प्रकार करना पड़े तो उसको उससे बड़ी ही मानसिक दुःख होता है। अतः वह उस कार्य से सदा ही बचकर रहना चाहता है। अब जनता को यह सोचना चाहिये कि जिस समाज मे ऐसी मान्यता फैल जाये उस समाज की क्या दशा होगी? पिता पुत्र स्त्री और पति तथा बड़े छोटे का पारस्परिक व्यवहार किस प्रकार व्यवस्थित रह सकता है? और इनके रहे बिना समाज पतन की अवस्था से कैसे बच सकता है? जहाँ ऐसी मान्यता हो वह समाज या परिवार सभ्य मानव समाज न रहकर पशु समाज या असभ्य मनुष्यों का समाज होगा। इसमें क्या कार व T ..Page Navigation
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