Book Title: Supatra Kupatra Charcha
Author(s): Ambikadutta Oza
Publisher: Aadinath Jain S M Sangh

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Page 36
________________ नहीं जीवाभिगम सूत्र पन्नवणासूत्र आवश्यक व भगवति के कई प्रमाणों के साथ 'विद्युत प्रकाशनी सजीवता अंगे विचारणा' नामक पुस्तक पढ़कर मुनि यशोविजयजी म. जो अपने को अल्पज्ञ कहते है। किन्तु संपूर्ण पुस्तक पढ़कर आप स्वयं उनकी बुद्धिमत्ता व प्रज्ञा का संपूर्ण निर्णय कर सकेंगे। उन्होंने आगम प्रमाणों के करीब 50 प्रमाणों के साथ लाइट-की सजीवता को सिद्ध किया है। तथा अपने यहाँ तो वैसे भी हेतु गिज्जा अने आणागिज्जा हो प्रकार के पदार्थ है। सर्वज्ञ कथित आज्ञा जिनका प्रमाण न भी मिले तो आणागिज्जा के रूप में स्वीकार्य है। जैसे कोई कहता है कि ये मेरे पिता हैं तो आपको व मुझे दोनों को मानना पड़ता है। वहाँ यह नहीं कहा जा सकता कि दुनिया में हजारों पुरुष है यही तेरे पिता कैसे? नो आर्युमेन्ट नो लेबोरेटरी टेस्ट। उपर चलता हआ पंखा हो नीचे लाइट जल रही हो फिर मुंहपत्ति बांधने का अर्थ ही क्या रहा? बिना मुंहपत्ति के बोलने से कई अधिक वायुकाय के जीव पंखें के 1 चक्कर घूमने में साफ हो जाते है। महाप्रज्ञजी इतना तो आप जानते ही होंगे कि देहउक्खं महाफलं व सहन करे वह साधु तथा दशवैकालिक में आयावयंति गिम्हेषु-हेमंतेषु अवाउडा' याने गर्मी में आतायना लेना गर्मी सहन करना ठंडी में ठंड सहन करना इसका फिर अर्थ ही क्या रहेगा। अनुकुलता मिलेगी तो उससे विरले ही बच सकते है। अनुमोदना के पाप से बचा नहीं जा सकता चाहे बटन आपने चालु किया हो या गृहस्थी ने बटन हमारे लिए चालु नहीं किया यह भी व्यवहारिक नहीं आपको हिंसा का डर होगा तो व्याख्यान के माध्यम से आप श्रावक-श्राविका को मना भी कर सकते है। महाप्रज्ञजी प्रभुपूजा आदि में हिंसा का बहाना आप करते हैं तो करोड़ों रु. के बनने वाले सभा भवन में आपका साथ क्यों? क्या छाती पर हाथ रखकर आप कह सकते है कि उसमें हमारा उपदेश नहीं ? तो भीखणजी के समय तो 1 भी सभा भवन नहीं था ! सुज्ञेषु किं बहुना। मुद्रक : मनोहर प्रिंटिंग प्रेस, ब्यावर 356441 დედა, დედამიწიდა,დადუმალი გლოლიდული

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