Book Title: Supatra Kupatra Charcha
Author(s): Ambikadutta Oza
Publisher: Aadinath Jain S M Sangh

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Page 28
________________ (26) कोई व्यक्ति ऊपर से गिर रहा है और हाथ का सहारा देने से बच सकता है तो उसे हाथ का सहारा देकर बचाने में भी ये लोग पाप मानते हैं। किसी गृहस्थ के घर में आग लगी है और घर का द्वार बन्द होने से घर वाले बाहर नहीं निकल सकते हैं तो उस घर का द्वार खोलकर उन प्राणियों की रक्षा करना भी ये लोग पाप मानते हैं। ये कहते हैं कि-"वे घर वाले कुपात्र हैं। कुपात्र की रक्षा में धर्म कैसे ! यह तो महान् पाप का कार्य है। उन लोगों ने पाप किया था उसका फल ये भोग रहे हैं। फल भोगने देना चाहिये, कर्ज चुका रहे हैं, चुकाने देना चाहिए।" यह हाल देखकर कहना पड़ता है कि “साधु से इतर सभी कुपात्र हैं यह मान्यता सामाजिक व्यवस्था दान और दया का नाश करने वाली बड़ी भारी जहरीली गैस है। जिस देश या समाज में इस मान्यता का प्रचार हो जाय उसका नाश होना अनिवार्य है। यदि गवर्नमेंट या राजा महाराजा आदि इसी मान्यता के अनुसार अपनी नीति बना लें तब तो जगत् के नाश होने में शायद ही एक दिन का विलम्ब हो। जिसके नेत्र में पाण्डु रोग हो जाता है उसको श्वेत चन्द्रमा भी पीला दिखता है। उसमें चन्द्रमा का अपराध नहीं किन्तु नेत्र वाले के नेत्रों का दोष है। इसी तरह शास्त्र का सरल सिद्धान्त भी किसी को वक्र दिखता है तो उसके अज्ञान का दोष है, शास्त्र का नहीं। इन तेरापन्थियों की मान्यता को देखकर जैन सिद्धान्त को न जानने वाले अन्य धर्मी लोग परस्पर कहा करते

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