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- जैन श्वेताम्बर सम्प्रदाय में कुछ काल से तेरह पन्थ नामक एक सम्प्रदाय चल रहा है। बीकानेर जिले के थली प्रदेश व मेवाड़ की ओसवाल जाति में इस सम्प्रदाय का प्रचार बहुत अधिक है। इस सम्प्रदाय को चलाने वाले भीखणजी नामक एक व्यक्ति थे। पाठकों की जानकारी के लिये उनका कुछ परिचय देना आवश्यक है। ___ मारवाड़ देश में कण्टालिया नामक एक ग्राम है। भीखणजी वहीं के निवासी थे। जाति के ओसवाल थे। इन्होंने सम्वत् 1808 में बाईस सम्प्रदाय के आचार्य पूज्य श्री रघुनाथजी महाराज से दीक्षा धारण की थी। पूज्य श्री रघुनाथजी महाराज भीखणजी को मेड़ता शहर में भगवती सूत्र पढ़ा रहे थे। भीखणजी को भगवती की कितनी बातें अँचती और कितनी नहीं जचती। भीखगजी की यह चेष्टा देखकर श्राक्क समर्थमलजी धाड़ीवाल ने पूज्य श्री से निवेदन किया कि आप भीखणजी को भगवती सूत्र पढ़ाकर सर्प को दूध पिला रहे हैं। यह भीखणजी आगे चल कर शास्त्रीय विषय की उलट धारणा रखने के कारणं जैन धर्म पर कलंक लगाने जैसी और धर्म की विपरीत प्ररूपणा करेंगे। धाडीवालजी का कथन सुनकर पूज्य श्री ने कहा कि-' भगवान महावीर स्वामी ने भी गोशालक और जमालि को विद्या पढ़ाई थी। वे आगे चलकर मिह्नव हुए यह उनके कर्मों का दोष था। पूज्य श्री ने चौमासे भर में भीखणजी को भगवती सूत्र पढ़ा दिया। भीखणजी को भगवती की प्रति वहीं रखकर विहार करने की आज्ञा दी। परंतु भीखणजी ने गुरु की आज्ञा
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