Book Title: Sukhi Hone ka Upay Part 1 Author(s): Nemichand Patni Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur View full book textPage 5
________________ ५० ७२ ७४ ७६ ভও ७९ विश्व व्यवस्था में पाँच अचेतन द्रव्यों की व्यवस्था विश्व व्यवस्था में जीव द्रव्य की स्थिति उपरोक्त द्रव्यों में आपसी सम्बन्ध क्या और कैसे निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध माना ही न जावे तो निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध कर्ता- कर्म सम्बन्ध का अन्तर निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध में पराधीनता का निराकरण जीवद्रव्य में निमित्त-नैमित्तिकपना निमित्त-नैमित्तिक शब्द द्वारा भ्रम संयोगीदृष्टि एवं स्वभावदृष्टि स्वभाव दृष्टि वीतरागता की एवं संयोगीदृष्टि सरागता की उत्पादक पांच समवाय व कार्य की सम्पन्नता मोक्षमार्ग में पुरुषार्थ की मुख्यता कमोदय में आत्मा का पुरुषार्थ अकार्यकारी कहने वाले कथनों का अभिप्राय काललब्धि के अभाव में पुरुषार्थ अकार्यकारी कथन का अभिप्राय मोक्षमार्ग प्राप्त करने का पुरुषार्थ तत्त्व निर्णय तत्त्वनिर्णय करना अथवा आत्मा के ज्ञायक अकर्ता स्वभाव का निर्णय करना १०३ जिनवाणी में आत्मा को कर्ता भी कहा है वह कैसे? १०५ रागादि उत्पन्न कैसे होते हैं? १०७ आत्मा को रागादि का कर्ता ही नहीं माना जाये तो क्या हानि? ११० आत्मा को सिद्ध समान मानना अथवा रागी-द्वेषी मानना १११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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