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सूत्र-विभाग-- १४. 'उपभोग परिभोग व्रत व्रत पाठ [ ८१
१. सचित्ताहारे
: पञ्चवखारण उपरात सचित्त आहार किया हो,
२. सचित्त-परिबद्धा हारे : सचित्त ( वृक्षादि से ) प्रतिबद्ध ( लगे हुए प्रचित गोद आदि) का आहार किया हो
३. प्रप्पउलि- श्रसहि
भवखरणया
- ४. दुप्पउलि-प्रोसहि भक्खरण्या
किया हो
: ( तथा कर्म की अपेक्षा )
कम्मश्रणं समरणोवास एणं परणरस कम्मादारगाई : पन्द्रह कर्मादान
: श्रावक को
जारिणयन्वाइ न समायरियन्वाइं तजहा-ते श्रालोज
१ इंगालकम्मे २ वरणकम्मे
: दुष्पक्व (अधपके या विधि से पके उबी भुट्टे आदि का ) का आहार किया हो
५. तुच्छो सहि भवख गया: तुच्छ औषधि ( अल्प सार वाले, सीताफल, गन्ना आदि ) का आहार
३. साडीकम्मे
४ भाडीकस्मे
५ फोडीकस्मे
६. दंत वाणिज्जे
७. लवखवारिगज्जे
1
: अपक्व (ग्रचित्त न बने हुए) का आहार किया हो
का
: अंगार का काम किया हो,
: वन का काम किया हो,
: गाडी आदि का काम किया हो,
: जो जानने योग्य हैं, किन्तु
: आचरण करने योग्य नहीं हैं, : उनके विषय में जो कोई प्रतिचार लगा हो तो, प्रालोङ -
: भाडे का काम किया हो,
: फोडने का काम किया हो, : दाँत श्रादि का वाणिज्य किया हो,
: लाख आदि का वाणिज्य किया हो,