Book Title: Subodh Jain Pathmala Part 02
Author(s): Parasmuni
Publisher: Sthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur

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Page 278
________________ २५२ ] सुबोध जन पाठमाला-भाग २ करके मोक्ष चले गये हैं और भविष्य काल मे भी इसी प्रकार अनन्त जीव मोक्ष मे चले जायेगे। इसलिए भव्य जीवो को 'पाँच समिति-तीन गुप्ति' के स्वरूप प्रादि को भली भाँति अवश्य जानना चाहिए और उसकी पूर्णतया सम्यक अाराधना करनी चाहिए। अथ समिति का स्वरूप समिति : विवेकपूर्वक प्रवृत्ति करना अर्थात् प्राणातिपात आदि पापो से बचने के लिए, आत्मा के उत्तम परिणामो से मन वचन काया की सम्यक् प्रवृत्ति करना। 'समिति मे सम्यक् प्रवृत्ति करना, मुख्य माना है।' अतएव 'समिति' की यह परिभाषा की है। अन्यथा मन, वचन, काया को असम्यक् प्रवृत्ति रोकना और कायोत्सर्ग, मौन, उपवास आदि के द्वारा 'सम्यक्-मिथ्या' दोनो प्रवृत्तियाँ रोकना भी 'समिति' है। अथ पहली ईर्यासमिति का स्वरूप ईर्या समिति : विवेकपूर्वक चलना अर्थात् 'किसी जीव की विराधना न हो, इसका उपयोग रख कर चलना। ईर्या समिति के चार कारण हैं-१. प्रालंबन २. काल ३. मार्ग और ४. यतना। १ आलंबन से-१. ज्ञान २. दर्शन और ३. चारित्र के लिये चले। अर्थात् ज्ञान, दर्शन और चारित्र की रक्षा के लिए पुष्टि के लिए और वृद्धि के लिए ही चले, किन्तु अकारण या

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