Book Title: Subodh Jain Pathmala Part 02
Author(s): Parasmuni
Publisher: Sthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur

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Page 298
________________ २७२ ] सुवोध जैन पाठमाला-भाग २ ४. अझुसिरे (अशुषिर) : जहाँ कीटजन्य पोली भूमि न हो तथा घास पत्ते आदि से ढंका भूमि न हो, वहाँ परिस्थापन करे। ५. अचिरकाल कयम्मिय (अचिर काल कृत): जिसे प्रचित्त हुए इतना अधिक समय नहीं हुया हो कि वह पुन. सचित्त बन जाय, ऐसी भूमि हो; वहाँ परिस्थापन करे। ६. विच्छिन्ने (विस्तीर्ण) : जो परिस्थापन योग्य भूमि कम-से-कम एक हाथ लम्बी-चौड़ी हो वहाँ, परिस्थापन करे। ७. दूरमोगाढे (दूरावगाढ़): जो भूमि कम-से-कम चार अंगुल नीचे तक अचित्त हो, वहाँ परिस्थापन करे । ८. रणासन्ने (अनासन्न) : जहाँ ग्राम नगर आराम उद्यानादि निकट न हो, वहाँ परिस्थापन करे। . बिलवजिए (बिल वजित): जहाँ चूहे आदि के बिल न हो, वहाँ परिस्थापन करे । १०. तसपारण बीय रहिए (त्रसप्रारणबीज रहित)= जहाँ द्वी न्द्रयादि त्रस प्राणी तथा बीज और उपलक्षण से सभी एकेन्द्रिय स्थावर प्राणी न हो, वहाँ परिस्थापन करे। . ३. काल से-दिन में देखकर और रात्रि को पूंजकर परिस्थापन केरे। तथा मात्रक (= मल-मूत्र के पात्र) और परिस्थापन भूमि की सायंकाल दिन रहते प्रतिलेखना करे। सायकाल दिन रहते मात्रक और परिस्थापना भूमि की प्रतिलेखना करने से मात्रक मे यदि जीव आ गये हो, तो उन्हे

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