Book Title: Subodh Jain Pathmala Part 02
Author(s): Parasmuni
Publisher: Sthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur

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Page 280
________________ २५४ 1 सुवोध जन पाठमाला-भाग २ तब तक । ४ भाव यतना मे-इन्द्रियों के पाँच विषय-१ शब्द, २. रूप, ३ गंध, ४. रस, ५. स्पर्श तथा स्वाध्याय के पाँच भेद-१. वाचना, २ पृच्छना, ३ परिवर्तना, ४ अनुप्रेक्षा, ५. धर्मकथा, इन दश बोलों को वर्जकर उपयोग सहित चले अर्थात् शब्दश्रवण, वाचनाग्रहण आदि न करता हुआ चले। ये दश ही वोल ईर्या समिति का उपघात (=नाश) करने वाले है, इसलिए तीर्थंकरो ने ईर्या समिति में इनका निपेध किया है। ईर्या समिति मे साधू श्रावक को तन्मूति (तम्मुत्ति) और तत्पुरस्कार (तप्पुरवकारे) होकर चलना चाहिए अर्थात् अपनी काया और मन के उपयोग को ईर्या मे ही लगाते हुए चलना चाहिये। दूसरी भाषा समिति का स्वरूप भाषा समिति : विवेकपूर्वक बोलना अर्थात् 'किसी जीव की विराधना न हो तथा असत्य या मिश्र भाषा का दोष न लगे', इसका उपयोग रखकर बोलना। भाषा समिति के चार भेद-१. द्रव्य २. क्षेत्र ३. काल और ४. भाव। १. द्रव्य से-असत्य और मिश्र भाषा सर्वथा न बोले । तथा सत्य और व्यवहार भाषा भी १. सावध (पाप सहित), २. सक्रिय (और क्रिया सहित, जैसे-) ३. कर्कश (कोमलता रहित), ४. कठोर (स्नेह रहित), ५. निश्चयात्मक (सन्देहयुक्त विषय मे तथा निश्चययुक्त विषय में सन्देहात्मक), ६. छेद करी (छिद्र डालने वाली) ७. भेदकरी (भेद डालने वाली)

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